हे प्रभो वर्द्धमान! ऋजुवालिका नदीना तीरे क्षपकश्रेणी
द्वारा सर्वज्ञताने साधीने, राजगृहीमां विपुलाचल उपर
तेनो जे बोध आपे आप्यो. , गौतमस्वामी–सुधर्मस्वामी–
जंबुस्वामी– धरसेनस्वामी–कुंदकुंदस्वामी जेवा समर्थ संतोए
जे बोध झीलीने भव्य जीवोने माटे संग्रहीत कर्यो; संतोए
संघरेला ने कहानगुरु द्वारा मळेला ते पवित्र बोधद्वारा
आजे अमे पण आपना अतीन्द्रिय–अमृतनी प्रसादी
पामीए छीए...ए अमृत आपनी सर्वज्ञतानी प्रतीत
उपजावे छे. प्रभो! आपना प्रत्ये परम भक्ति अने
विनयथी, ए सर्वज्ञतानी प्रतीतद्वारा अमारा आत्मामां
केवळज्ञानने बोलावीए छीए....अंशद्वारा अंशीने
बोलावीए छीए.