Atmadharma magazine - Ank 265
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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आजना मंगळ प्रभाते
केवळज्ञानने बोलावीए छीए
‘षट्खंडागम’ ना नवमा पुस्तकमां कहे छे के विनयवान
शिष्य मतिज्ञानना बळे केवळज्ञानने बोलावे छे.
हे प्रभो वर्द्धमान! ऋजुवालिका नदीना तीरे क्षपकश्रेणी
द्वारा सर्वज्ञताने साधीने, राजगृहीमां विपुलाचल उपर
तेनो जे बोध आपे आप्यो. , गौतमस्वामी–सुधर्मस्वामी–
जंबुस्वामी– धरसेनस्वामी–कुंदकुंदस्वामी जेवा समर्थ संतोए
जे बोध झीलीने भव्य जीवोने माटे संग्रहीत कर्यो; संतोए
संघरेला ने कहानगुरु द्वारा मळेला ते पवित्र बोधद्वारा
आजे अमे पण आपना अतीन्द्रिय–अमृतनी प्रसादी
पामीए छीए...ए अमृत आपनी सर्वज्ञतानी प्रतीत
उपजावे छे. प्रभो! आपना प्रत्ये परम भक्ति अने
विनयथी, ए सर्वज्ञतानी प्रतीतद्वारा अमारा आत्मामां
केवळज्ञानने बोलावीए छीए....अंशद्वारा अंशीने
बोलावीए छीए.