बंने एकसाथे उपादेयपणे रही शके नहि. स्वभाव अने परभाव एकबीजाथी
विरुद्ध–ए बंनेने एक साथे उपादेय करी शकाय नहि. परमात्मतत्त्वने उपादेय
करतां रागनो एक कणियो पण उपादेय रहे नहि. चैतन्यना अमृतने उपादेय कर्युं
त्यां रागरूप झेरनो स्वाद कोण ल्ये? अंतरात्मबुद्धि प्रगटी त्यां बहिरात्मबुद्धि
छूटी गई. अंतरात्मबुद्धिमां परमआनंदना अमृत पीधां, त्यां रागना वेदननी
रुचि रहे नहि. ऊडे ऊंडे रागनी के बहारना जाणपणानी मीठास रही जाय तो
अंदरनुं परमात्मतत्त्व प्रगट नहि थाय. माटे बाह्यबुद्धि छोडीने चैतन्यनिधानमां
नजर कर. अंतर–अवलोकनथी तारा आत्मामां अपूर्व ज्ञान–आनंदना मंगळ
दीवडा प्रगटशे.