Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९२ आत्मधर्म : ७ :
अरे, मारा चैतन्यनो आनंद, तेमां आ कलेश शो? आ चार गतिना दुःख शा? एम जो
तुं दुःखथी छूटीने तारा आनंदने अनुभववा चाहतो हो तो, दुःखथी भिन्न तारा
स्वरूपने जाण. मनमां ज्यां सुधी बीजुं शल्य हशे–चिन्ता हशे–उपाधि हशे त्यांसुधी
चित्त आत्मामां जोडाशे नहि. माटे सर्व चिन्ता छोडीने आत्मामां चित्तने जोड.
पोतामां जेने रागादि भावो साथे एकबुद्धि छे ते परभावथी भिन्न आत्माने
देखतो नथी; बीजाना आत्माने पण ते परभावथी पृथक् देखतो नथी. ते निश्चिंत थईने
आत्माने चिंतवी शकशे नहि.
भाई, तारा आत्मामां सदाय अनंत गुण छे; ते बधा गुण समये समये
स्वपर्यायरूप कार्यपणे परिणमी ज रह्या छे. जे कार्य निजस्वभावथी थई ज रह्युं छे तेने
बीजा साधनवडे हुं करुं ए वात क््यां रहे छे? सामान्य–विशेषरूप वस्तु छे, एटले समये
समये ते परिणमी ज रही छे, पछी बीजो तेना परिणमनमां शुं दखल करे?–जाणे, पण
तेमां कांई दखल करी शके नहि. आवुं स्वाधीन–स्वतंत्र स्वरूप जाणीने हे जीव! तुं
अनंतगुणमय तारा स्वरूपने ज चिंतव ने अन्यनी चिन्ता छोड. बहारनी बीजी
चिन्तानी तो शी वात, अहीं तो कहे छे के मोक्षनी पण चिन्ता न कर. मोक्षनी चिन्ता
कर्या करवाथी कांई मोक्ष नथी थतो, पण विकल्परहित थईने स्वरूपना चिंतनमां रहेतां,
उपयोगनी शुद्धी वधतां मोक्ष थाय छे. ए ज रीते, सम्यग्दर्शन माटे सम्यग्दर्शननी
चिन्ताना विकल्प कर्या करे तेथी कांई सम्यग्दर्शन पमाय नहि, पण आत्मानुं
वास्तविकस्वरूप ओळखी, तेने चिन्तवी, निर्विकल्प प्रतीत करतां सम्यग्दर्शन थाय छे.
मोक्षनी ईच्छा मोक्षने अटकावनार छे; अने ते पर्याय तो अत्यारे अभावरूप
छे, ते अभावनुं चिंतन शुं? सद्भावरूप जे स्वभाव छे ते स्वभावने ज चिंतनमां ले.
ए स्वभावनी अनुभूति ज मोक्षनो ने सम्यक्त्वादिनो उपाय छे. चिन्तामां तो
आकुळता छे, ने ते चिन्ताथी तो कर्म बंधाय छे; माटे चिन्ता ए कांई उपाय नथी. माटे
कह्युं छे के निश्चिंत पुरुषो आत्माने साधे छे. चैतन्यस्वभावमां चिन्ता केवी? विकल्प
केवो? एनी आराधनाथी तो चिन्ता तूटी जाय छे; जगतनी गमे तेवी चिन्तामां पण
धर्मीजीव ज्यां पोताना स्वभावना चिंतनमां उपयोगने जोडे छे त्यां दुनियानी बधी
चिन्ताना चूरा थई जाय छे. चिन्तामां तो अशान्ति छे; विकल्परहित शांतचित्त थईने
आत्माने ध्यावे त्यारे आत्मा अनुभवमां आवे छे; ए अनुभवमां कोई चिन्तानो
बोजो नथी, परनी चिन्तानो भार माथे राखीने आत्मानी शांत अनुभूति थई शके
नहि. चिन्तानो बोजो उतारी नांखीने हळवो फूल थईने ज्ञानने अंदरमां थंभावे त्यारे
आत्माना शांतरसनो अनुभव थाय.