अनुभववा चाहतो हो, तो बीजी बधी चिन्ता छोडीने आत्मामां ज
चित्तने जोड.....सम्यग्दर्शननी चिन्ताना विकल्प कर्या करे तेथी कांई
सम्यग्दर्शन पमातुं नथी; आत्मानुं वास्तविक स्वरूप ओळखी, तेने
चिन्तवी, निर्विकल्प प्रतीत करतां सम्यग्दर्शन थाय छे....परनी
चिन्तानो भार माथे राखीने आत्मानी शांत–अनुभूति थई शके
नहीं....सर्वज्ञ जेवो स्वभाव ज्यां प्रतीतमां लीधो त्यां धर्मीने तेवुं
परिणमन थवा लाग्युं.....ने ते सिद्ध–भगवंतोनी पंक्तिमां बेठो.
आ परमात्म–प्रकाशमां आत्मानुं परमात्मस्वरूप बतावीने तेना चिन्तननो
तारा आनंदना शत्रु छे. चैतन्यस्वरूपना संबंधथी परम आनंद थाय छे, ने परना
संबंधथी दुःख थाय छे. चारे गतिना दुःखनो जो तने डर लाग्यो होय तो हे जीव!
निश्चिंत थईने तुं मोक्षनुं साधन कर; आ लोक संबंधी कांई पण चिन्ता न कर, निश्चिंत
थईने परलोकनुं साधन कर, एटले के उत्कृष्ट आत्मस्वरूपनुं अवलोकन कर.