Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९२ आत्मधर्म : ५ :
केवळज्ञान एवडुं मोटुं थयुं के लोकालोक तेमां ज्ञेय थया, छतां ते केवळज्ञाननी सीमामां परनो
एक कणियो पण आव्यो नथी. ते ज्ञान लोकालोकथी भिन्न छे, पण पोताना आनंदादि
स्वभावथी अभिन्न छे. परने तो तन्मय थया वगर जाणे छे, पण पोताना आनंदने तो
तन्मय थईने जाणे छे. पोताना आनंदने जाणतां आनंदथी जुदुं रहे नहि.–आम अतीन्द्रिय
आनंद साथे ज्ञानने तन्मयपणुं छे; आवुं ज्ञान ज मारुं ‘स्व’ छे; ज्ञानथी भिन्न बीजुं कांई
मारुं स्व नथी.
ज्ञाननी नजीकमां शरीरनी क्रिया के राग देखाय त्यां ज्ञान तेमां तन्मय थया वगर
तेने जाणनारुं छे. पण अज्ञानीने भ्रमणा थाय छे के मारा ज्ञानमां आ रागादि आवी गया.–
तेने ज्ञाननी सत्ता जुदी भासती नथी. राग साथे तन्मय थईने जाणवा जाय तो ते ज्ञान
आनंद साथे तन्मय रहेतुं नथी.
* जीवतत्त्व तो ज्ञानमय छे.
* रागादिक तो आस्रवतत्त्व छे.
* देहनी क्रिया तो अजीवतत्त्व छे.
–एम त्रण तत्त्वो भिन्नभिन्न छे. त्यां भिन्नपणुं भूलीने तन्मयपणे जाणवा जाय छे
तेनुं ज्ञान मिथ्या थाय छे. देहनुं ने रागनुं ‘ज्ञान’ पोतानुं छे, पण देह के राग पोतानां नथी.
ज्ञान जो रागने जाणतां रागमय थाय के देहने जाणतां देहमय थाय तो जीव–आस्रव ने
अजीव त्रणे तत्त्वो जुदा रहेतां नथी, जीवनी पोतानी जाणवानी ताकात केवी छे एनी पण
अज्ञानीने खबर नथी.
ज्ञाननी तन्मयतामां आनंद छे, प्रभुता छे, स्वपरप्रकाशकता छे, पण ते ज्ञानमां पर नथी,
विकार नथी. ज्ञान अने परज्ञेयनी भिन्नता छे, ने आनंद वगेरे स्वज्ञेय साथे ज्ञाननी अभिन्नता
छे. आनंद साथे उपयोगनुं तन्मयपणुं थया वगर अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन थाय नहि.
अरे जीव! आ तारा घरनी, तारा स्वभावनी वात सन्तो तने देखाडे छे. ज्ञान तारुं
छे तेने तुं जाण, ते ज्ञान उपादेयरूप सुखथी भरपूर छे. सुख साथे तन्मय आवा तारा ज्ञानने
ज तुं उपादेय जाण. ‘मारुं ज्ञान छे’ एम ज्ञानपणे आत्माने अनुभवमां ले.
ज्ञान परने जाणतां निजभावने छोडीने परमां जतुं नथी, के पर भावना अंशनेय
पोतामां लावतुं नथी. पोताना अस्तित्वमां रहीने स्व–परप्रकाशकभावे ज्ञान परिणमे छे.
ज्ञाननी सत्तामां आनंद छे, पण ज्ञाननी सत्तामां जड नथी, ज्ञाननी सत्तामां विकार नथी.
आनंद साथे जेने जुदाई नथी एवुं निजज्ञान ज अनुभववा योग्य छे–एम जाणवुं. आवा
ज्ञानने पोते अनुभवमां ल्ये त्यारे केवळी प्रभुना पूर्ण ज्ञाननी ने पूर्ण आनंदनी खबर पडे.
ए ईन्द्रियातीत ज्ञान परम आनंदरसमां तरबोळ छे. आवुं ज्ञान निजस्वभावना परम
महिमाथी भरेलुं छे. –आवुं मारुं ज्ञान छे, ते ज हुं छुं. आम जाणनार थईने जाणनारने
जाणतां परम आनंद थाय छे. –आवा आनंदमय ज्ञाननो अनुभव करो–एम सन्तोनो
उपदेश अने आशीर्वाद छे.