Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९२ आत्मधर्म : ९ :
बे भाग
(तेमांथी सारूं ते तारुं)
एककोर आनंदनो मोटो ढगलो एवो स्वभाव,
बीजीकोर राग–द्वेष–पुण्य–पाप–मोहरूप दुःखनो ढगलो.
एक सुखनो ढगलो बीजो दुःखनो ढगलो, बंने ढगला तारी सामे
पड्या छे, तेमांथी तारे जोईए ते ढगलो ले. तने जे गमे ते भाग तुं ले. क््यो
भाग लईशुं?
सन्तो कहे छे के आ आनंदनो ढगलो ते तारो साचो भाग छे, ते
भाग सारो ने उत्तम छे, ने दुःखनो–विकारनो भाग ते सारो भाग नथी, ए
तो बगडेलो भाग छे. माटे सारो भाग ते तारो, –एम समजीने सारभूत
एवा आनंदस्वभावने तुं ग्रहण करजे, विकारने–दुःखने ग्रहण करीश नहि.
‘सारूं ते तारुं. ’
एककोर परभावोनो पूंज ने एककोर शुद्धस्वभावनो पूंज, बंने ढगला
एक साथे तारी सामे विद्यमान छे, पण तुं परभावना पूंजने छोडीने
शुद्धद्रष्टिवडे अंतरमां स्वभावना पूंजने ग्रहण करजे. ए भाग अनंतो महान
अने उत्तम छे. –आवो संतोनो उपदेश छे.
बहु लोक ज्ञानगुणे रहित, आ पद नहि पामी शके;
रे ग्रहण कर तुं नियत आ, जो कर्ममोक्षेच्छा तने.