Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९२ आत्मधर्म : १३ :
[७–८]
तत्त्वरसिक जिज्ञासुओने प्रिय, दश प्रश्न दश उत्तरनो आ
विभाग पू. गुरुदेव पासे थयेल तत्त्वचर्चाओमांथी तेमज
शास्त्रोमांथी तैयार करवामां आवे छे. ब्र. ह. जैन

[
७१] प्रश्न:– बीजना चन्द्रनी त्रण कळा होय छे, ए द्रष्टान्ते भेदज्ञाननी त्रण कळा
बतावी, ते कई रीते?
उत्तर:– पूर्ण चन्द्रनी सोळ कळा छे; पछी एकेक घटतां अमासे पण एक कळा
तो खूली ज रहे छे; पछी अनुक्रमे वधतां बीजनी त्रण कळा होय छे:
तेम धर्मीने भेदज्ञानरूपी जे बीज ऊगी ते रत्नत्रयना अंशरूप
त्रणकळा सहित छे, एटले के सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान ने
स्वरूपाचरणरूप चारित्र–ए त्रणे कळा सहित भेदज्ञानरूपी बीज ऊगे
छे. (वै. सुद बीजना प्रवचनमांथी)
[७२] प्रश्न:– एक साथे वधुमां वधु केटला जीवो केवळज्ञान पामे?
उत्तर:– एक साथे वधुमां वधु १०८ जीवो केवळज्ञान पामे.
[७३] प्रश्न:– एक तीर्थंकरने एक करतां वधु गणधरो होय?
उत्तर:– हा; आ चोवीसीमां सौथी वधु (११६) गणधरो सुमतिनाथप्रभुने,
अने सौथी ओछा (१०) गणधरो पार्श्वनाथप्रभुने हता. बधाय
गणधरो नियमथी तद्भवमोक्षगामी होय छे.