Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष २३ अंक २–३
वीर सं. २४९२ मागशर–पोष
DEC 1965-JAN 1966
तंत्री: जगजीवन बावचंद दोशी, कुंडला] [संपादक : ब्र. हरिलाल जैन, सोनगढ
पू. गुरुदेवनुं जीवन अध्यात्मरसथी केवुं ओतप्रोत छे, ने तेमना पवित्र जीवन साथे
वणायेला आगळ–पाछळना मंगल प्रसंगो केवा आनंदकारी छे ते घणा खरा मुमुक्षुओमां प्रसिद्ध
छे. गुरुदेवनी वाणी आत्मार्थीने शूरवीरता जगाडनारी छे ने मुमुक्षुने मोक्षमार्ग देखाडनारी छे.
गुरुदेवनी आवी वाणीने प्रकाशित करतां ‘आत्मधर्म’ ने आजकाल करतां त्रेवीस वर्ष थया.
‘आत्मधर्म’ द्वारा गुरुदेवनी आवी मंगळ वाणीनी सेवानुं, ने तेमनी चरणछायामां वसवानुं
सद्भाग्य प्राप्त थयुं ते मारा जीवनमां महान लाभनुं कारण बन्युं छे; गुरुदेवनी परमकृपा अने
उपकारो जोतां हृदय भक्तिथी भींजाई जाय छे.
गुरुदेवनी मंगल छायामां आपणने सौने आत्मार्थीतानुं पोषण मळे, वात्सल्यनो
विस्तार थाय, ने देवगुरुधर्मनी खूब प्रभावना थाय–ए ‘आत्मधर्म’ नो उद्देश छे, ने तेने
अनुलक्षीने आत्मधर्मना वधु ने वधु विकासनी भावना छे. तेमां सर्वे वडीलो अने साधर्मीओना
सहकारने आवकारीए छीए. आत्मधर्मने पोतानुं ज समजीने अनेक जिज्ञासुओए तार–
टपालद्वारा के रूबरू जे प्रेम प्रदर्शित करेल छे ते बदल तेमना आभारी छीए.
अत्यारे गुरुदेवना प्रवचनमां के चर्चामां आवेल नवीन न्यायो तथा समाचारो लगभग
एक महिना पछी जिज्ञासुओने पहोंची शके छे. तेने बदले ताजा प्रवचनो झडपथी जिज्ञासुओने
पहोचे–ते माटे आत्मधर्मने पाक्षिक बनाववानी घणा जिज्ञासुओनी मागणी छे ने संस्थाए पण
ते ध्येय स्वीकार्युं छे. गुरुदेवना प्रतापथी ने मुमुक्षुओना सहकारथी ते ध्येय वेलासर पार पडे
एम ईच्छीए छीए. आवता अंकथी शरू थतो “बालविभाग” पण बाळकोने आनंदपूर्वक
धर्ममां रस लेता करशे. आवता अंकथी आत्मधर्मनुं प्रकाशन एकदम नियमित थई जशे.
आत्मधर्मना विकास माटे सलाह–सूचनाओ मोकलवा सौने प्रेमभर्युं आमंत्रण छे.