Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : आत्मधर्म : मागशर : २४९२
एक क्षणमां आत्माने जाणवानी
ऊंडी जिज्ञासा अने तेनी रीत
एक क्षणमां मोह तूटे ने आत्मस्वरूप प्रकाशित थाय–एवा
प्रयोजनभूत ज्ञाननो उपदेश शिष्य जिज्ञासापूर्वक मांगे छे; तेने
प्रयोजनभूत एवा शुद्ध आत्मतत्त्वनो उपदेश आपतां कहे छे के हे
वत्स! ज्ञान साथे तारा आत्माने तुं एकमेक जाण ने अन्य समस्त
भावोथी भिन्न जाण. आ रीते राग वगरना स्वसंवेदनज्ञानथी तारो
आत्मा तने तरत ज जणाशे.
[परमात्मप्रकाश गा. १०४ थी १०७]
प्रभाकर भट्ट एटले के आत्मानो जिज्ञासु शिष्य तीव्र जिज्ञासाथी विनयथी पूछे
छे के हे स्वामी! जे ज्ञानवडे एक क्षणमां आत्मानुं ज्ञान थाय ने आत्मानो अनुभव
थाय–एवा ज्ञाननो उपदेश आपो. शरीरवडे–ईन्द्रियोवडे के रागवडे आत्मा जणाशे एम
तो मानतो नथी, आत्मा पोताना ज्ञानवडे ज जणाय एम लक्षमां लईने पूछे छे के हे
स्वामी! बीजा शुभाशुभ विकल्पोथी मारे शुं प्रयोजन छे? मने तो एवुं ज्ञान ज
बतावो के जे ज्ञान वडे तुरत ज आत्मप्राप्ति थाय. आत्मा जे रीते जणाय तेनुं ज मारे
प्रयोजन छे बीजुं कोई प्रयोजन नथी. –आवी पात्रता प्रगट करीने शिष्य पूछे छे.
आत्माने जाणवा माटे कांई रागनुं अवलंबन बतावो–एम नथी कहेतो, पण जे
राग वगरना ज्ञानथी आत्मानुं स्वसंवेदन थाय ते ज्ञान केम प्रगटे–तेम मने
बतावो....तुरत ज ते ज्ञान प्रगटे एवुं मने बतावो. मारे परलक्षनुं प्रयोजन नथी, मारे
तो जे ज्ञानथी मारा आत्मानुं वीतरागी स्वसंवेदन प्रगटे ने आनंदनो अनुभव थाय–
एवुं ज्ञान करवुं छे. हुं मारा आत्माने जाणुं–ते ज मारे प्रयोजन छे. शुद्ध–बुद्ध–एक
स्वभावी आत्मा छे तेनुं ज्ञान करुं के जेथी मारे भवभ्रमणनो अंत आवे. जुओ,
संसारसंबंधी कांई प्रयोजन जेना मनमां नथी, मान–प्रतिष्ठानी के बहारना जाणपणानी
अभिलाषा जेने नथी, एक ज जिज्ञासा छे के मने मारो आत्मा जणाय –ए वात
शीखवो; एवुं ज्ञान मने प्रकाशित करो के जे ज्ञानप्रकाशथी मारो शुद्धबुद्ध आत्मा
जणाय, एक क्षणमां तुरत ज जणाय–एवुं उत्तम ज्ञान मने आपो, ए सिवाय बीजा
कोई विकल्पोथी मारे शुं काम छे? केमके एनाथी कांई आत्मा जणातो नथी.
जुओ, आटली तो भूमिका शुद्ध करीने आत्माने जाणवानो प्रश्न कर्यो छे. समजनार