: मागशर : २४९२ आत्मधर्म : ४५ :
‘ज्ञानचेतना’ – जेना वडे ज्ञानी ओळखाय
ज्ञानचेतना मोक्षका मार्ग.......अज्ञानचेतना संसारका मार्ग
ज्ञानचेतनावडे ज्ञानी केवळज्ञानने बोलावे छे.
(समयसार कलश ३२४ उपर ज्ञानचेतनानुं स्वरूप समजावतुं खास प्रवचन)
ज्ञानचेतना एटले शुद्धआत्माने अनुभवनारी चेतना, ते चेतना मोक्षमार्ग छे. आ
ज्ञानचेतनानो संबंध शास्त्रनां भणतर साथे नथी, ज्ञानचेतना तो अंतर्मुख थईने
आत्माना साक्षात्कारनुं कार्य करे; –ओछुं वधारे जाणपणुं हो तेनी साथे संबंध नथी, पण
ज्ञानानंद स्वभावमां सन्मुख थतां ज्ञानचेतना प्रगटे छे; ते ज्ञानचेतनामां आत्मा अत्यंत
शुद्धपणे प्रकाशे छे. आवी ज्ञानचेतना चोथा गुणस्थानथी शरू थाय छे. ज्ञानचेतना ते
कारण ने केवळज्ञान तेनुं कार्य. ज्ञानचेतनानुं कार्य राग तो नहि, ने ज्ञानचेतनानुं कार्य
बहारनुं जाणपणुं पण नहि; अंतर्मुख थईने शुद्धआत्माने संचेतवुं–अनुभववुं ते
ज्ञानचेतनानुं कार्य छे. आवी ज्ञानचेतनाने धर्मी ज जाणे छे. धर्मनी, संवरनी के
मोक्षमार्गनी शरूआत आ ज्ञानचेतनाथी थाय छे.
ज्ञानचेतना आत्मिकरसथी भरेली छे; ने समस्त विषयोथी अत्यंत उदासीन छे.
जीवना शुद्ध स्वरूपने अनुभवनारी ज्ञानचेतनावडे शुद्धज्ञाननी प्राप्ति थाय छे, ने
अशुद्धताना अनुभववडे अशुद्धतानी प्राप्ति थाय छे. आ रीते कारणअनुसार कार्य थाय छे,
एटले के शुद्धकारणना सेवनथी शुद्धकार्य थाय छे ने अशुद्धकारणना सेवनथी अशुद्धता थाय
छे. राग तो अशुद्धता छे, ते अशुद्धताना सेवनवडे कदी शुद्धता थई जाय–एम बनतुं नथी.
ज्ञानचेतनावडे अंतरमां शुद्धस्वभावने अनुभवतां केवळज्ञानरूप शुद्धता खीले छे. बस,
अंतरमां स्वभावसन्मुखनो अनुभव ते ज ज्ञानचेतनानुं काम छे.
उपदेश आपीने बीजा जीवोने तारवा ते कांई ज्ञानचेतनानुं कार्य नथी. अंदर
विकल्प ऊठे ते पण ज्ञानचेतनानुं कार्य नथी त्यां वाणीनी तो शी वात? विकल्पने के
वाणीने जे ज्ञानचेतनानुं कार्य माने ते जीवने ज्ञानचेतना प्रगटी नथी, ज्ञानचेतना शुं छे
तेनी तेने खबर नथी. ते तो रागद्वेषपरिणाममां तन्मय थईने अज्ञानचेतनाने सेवे छे, ते
अज्ञानचेतनामांथी संसारनी उत्पत्ति थाय छे.
आ रीते ज्ञानचेतना ते मोक्षनो मार्ग, ने अज्ञानचेतना ते संसारनो मार्ग छे.
जेनामां ज्ञान नथी तेना सेवनथी मोक्षमार्ग केम थाय? शुभविकल्प ते कांई ज्ञान नथी,