: ४६ : आत्मधर्म : मागशर : २४९२
एटले ते शुभविकल्पना सेवनथी मोक्षमार्ग थाय नहि; शुभविकल्पने जे मोक्षमार्ग माने छे
ते अज्ञानचेतनाने सेवे छे. ते अज्ञानचेतनानुं फळ हर्षशोकनुं वेदन छे एटले के दुःखनुं
वेदन छे, ने ते ज्ञाननी शुद्धताने रोके छे, तथा आठकर्मोने बांधे छे. तेनी सामे
ज्ञानचेतनामां आनंदनुं वेदन छे, ते शुद्धता प्रगट करे छे ने आठकर्मना बंधने तोडे छे.
ज्ञानचेतनावडे ज्ञानीए जाण्युं छे के हुं शुद्ध चैतन्यस्वरूप जीव छुं; सर्व कर्मनी
उपाधिथी रहित मारुं शुद्ध स्वरूप मने स्वानुभवप्रत्यक्षथी आस्वादमां आवे छे. ज्ञानी
आवी ज्ञानचेतनावडे ज ओळखाय छे.
ज्ञानचेतनावडे ज्ञानी पोताना शुद्धआत्माने ज चेते छे–अनुभवे छे; ज्ञानचेतनावडे
पकडीने तेना अनुभवमां एकाग्र थवुं ते ज्ञानचेतनानुं कार्य छे, शुद्ध चारित्र पण तेमां
समाई जाय छे; आवी ज्ञानचेतना ते मोक्षमार्ग छे, ते केवळज्ञानने बोलावनारी छे. अहा,
ज्ञानचेतनावडे ज्ञानी केवळज्ञानने बोलावे छे. विकल्पवडे बोलाव्ये केवळज्ञान कांई जवाब
आपे तेवुं नथी. विकल्प तो अशुद्धता छे तेना वडे केवळज्ञान केम आवे? ज्ञानचेतना ते
केवळज्ञाननी जातनी ज छे, तेना वडे अंतर्मुख थईने बोलावतां तरत केवळज्ञान आवे छे.
आवी ज्ञानचेतनावडे ज्ञानी केवळज्ञानने बोलावे छे.
आवी ज्ञानचेतनाधारी केवळीना केडायती संतोने नमस्कार.
प्रश्न:– ज्ञानचेतनानुं फळ शुं?
उत्तर:– ज्ञानचेतनाना फळमां शास्त्रना उकेल थवा मांडे एवुं तेनुं फळ नथी,
पण आत्माना अनुभवनो उकेल पामी जाय–एवी ज्ञानचेतना छे.
शास्त्रनां भणतर उपरथी ज्ञानचेतनानुं माप नथी, ज्ञानचेतना तो
अंतरमां आत्माने चेते छे, ज्ञानस्वरूप आत्माने जे चेते–अनुभवे ते
ज्ञानचेतना छे. (आ न्याय खास समजवा जेवो छे.) ज्ञानचेतनानुं
कार्य अंतरमां आवे छे, बहारमां नहीं. कोई जीव शास्त्रना अर्थनी
झपट बोलावे माटे तेने ज्ञानचेतना ऊघडी गई एम तेनुं माप नथी;
केम के कोईकने ते प्रकारनो भाषानो योग न होय ने कदाच तेवो परनो
विशेष उघाड पण न होय, छतां ज्ञानने अंतरमां वाळीने रागथी भिन्न
स्वरूपने अनुभवमां लई लीधुं छे तो ते जीवने अपूर्व ज्ञानचेतना
अंदरमां खीली गई छे. एनी ओळखाण थवी जीवोने कठण छे.
(ज्ञानचेतनाना स्वरूपने स्पष्ट करतुं खास प्रवचन आपेल छे –ते
मननीय छे.)