Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : मागशर : २४९२
शुद्ध आत्मानुं सेवन करतो करतो
धर्मीजीवोनो संघ शिवपुरीमां चाल्यो जाय छे
[तुं पण एनो आदर करीने ए संघनी साथे भळी जा]
(परमात्मप्रकाश गा. ३९ प्रवचनमांथी)
मोक्षने अर्थे एक ज कारण–शुद्धआत्मा केवळज्ञानस्वभावी छे तेने उपादेय
जाणीने ध्यानमां ध्याववो ते ज एक मोक्षनुं कारण भगवाने कह्युं छे. जेना
केवळज्ञानरूपी आकाशमां समस्त लोकालोक एक नक्षत्रसमान भासे छे एवा
ज्ञानसामर्थ्यवाळुं आ परमात्मतत्त्व ज धर्मात्माओने उपादेय छे, –कई रीते? के समस्त
विकल्परहित समाधिकाळे ते परमात्मतत्त्व उपादेय छे. मोक्षपुरीमां जेटला जीवो गया,
जाय छे के जशे ते बधा जीवो अंतरमां आवा परमात्मतत्त्वने उपादेय करी करीने ज
मोक्षमां जाय छे. मोक्षगामी जीवोनो संघ परमात्मतत्त्वनी आराधना करतो करतो
मोक्षमां चाल्यो जाय छे.
शुद्ध परमात्मतत्त्व निर्विकल्पध्यानमां प्रगट थाय छे, त्यारे परम आनंदसहित
अनुभवमां आवे छे, अने ते ज आराधवायोग्य छे. एनी आराधना ए ज मोक्षनो
मार्ग छे. मोक्षार्थीए पोताना परमात्मतत्त्व सिवाय बीजुं कांई आराधवायोग्य नथी.
ज्ञानीओ तो तेने आराधी रह्या ज छे, ने ज्ञानीनी जेम बीजा जिज्ञासु आत्मार्थी
जीवोए पण ते ज आराधवायोग्य छे.
हे जीव! मोक्षना अर्थे तुं आवा आत्मानुं सेवन कर. कई रीते? के अंतरमां
निर्विकल्पध्यानद्वारा तेने उपादेय करीने जाण. मात्र धारणाथी नहि, शास्त्रथी के
श्रवणथी नहि, विकल्पथी नहि, पण उपयोगने अंतरमां जोडीने चैतन्यस्वभावने
उपादेय जाण. सन्तो अंतरना ध्यानमां जे ज्ञानस्वरूप आत्माने ध्यावे छे तेने ज तुं
निरंतर आदरवालायक जाण, केमके ते ज एक निरंतर मोक्षनुं कारण छे; वच्चे बीजा
कोईने एक क्षण पण मोक्षना कारण तरीके न सेव.