आत्माने सेवी सेवीने मोक्षने साधी रह्यां छे. तारे ए साधक जीवोना संघमां भळवुं
होय तो तुं पण एवा आत्माने जाणीने तेनुं ज सेवन कर.
आर्यिका–श्रावक ने श्राविका ए चारे संघ ए मार्गना सेवनथी मोक्षने साधी रह्या छे;
सन्तो ए ज मार्ग अहीं प्रकाशी रह्या छे ने धर्मात्माओ तेने साधी रह्या छे. शुद्धात्मानी
आराधनारूप एक ज मार्ग छे, बीजो कोई मार्ग नथी.
ध्यानमां प्रगटे छे, बहिर्मुख कोई भावथी ए तत्त्व प्रगटतुं नथी. विकारीभावो तो एना
वेरी छे, तो ते विकारना ध्यानमां ए परमतत्त्व केम प्रगटे? राग वगरनुं जे शांत–
निर्विकल्प ध्यान तेमां ज परमात्मतत्त्व आनंदसहित प्रगटे छे. ए ज मोक्षनुं कारण छे.
स्थावर पर्यायोरूप संसारनी रचना करे छे. त्रस–स्थावर जीवोनो उत्पादक के रचनार
कोई बीजो ईश्वर नथी, पण आ आत्मा पोते ज पोताना परमात्मस्वरूपने भूलीने,
रागद्वेष–मोहवडे पोतानी पर्यायमां त्रस–स्थावर पर्यायोने रचे छे, तेथी ते ज त्रस–
स्थावरनो उत्पादक छे. ने ज्यां अंतर्मुख स्वभावनो अपार महिमा सन्तोनी पासेथी
सांभळतां तेने निर्विकल्पध्यानमां उपादेय कर्यो त्यां भवभ्रमण टळ्युं ने परमात्मपद
खील्युं. अहो, मोक्षना–कारणरूप आवुं उपादेय तत्त्व संतोए परम अनुग्रहथी बताव्युं
छे. हे जीव आवा तत्त्वने परम उल्लासथी तुं सेव, ने संतोनी साथे शिवपुरीना संघमां
चाल्यो जा...