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परिणति पण शुद्धपणे प्रगट थाय छे. ज्ञानगुणनुं परिणमन ते वखते स्वने पकडवानी
लायकातवाळुं थईने सम्यक्पणे प्रगट्युं; आनंदगुणनो अंश प्रगट थयो; तेम अकारण
कार्यत्व शक्तिनी निर्मळपर्याय थई, एटले के राग साथे कारण–कार्यपणुं न रह्युं; राग
मारा सम्यक्त्वादिनुं कारण, ने हुं तेनो कर्ता एवुं राग साथे कर्ताकर्मपणुं धर्मात्माने
नथी. ए ज रीते विभुत्वशक्ति पण निर्मळपणे व्यक्त थई एटले बधागुणोनी
निर्मळपर्यायमां आत्मा विभु थईने व्याप्यो. आ रीते सम्यक् श्रद्धा थतां अनंतगुणो
ऊछळे छे एटले के निर्मळ पर्यायरूप परिणमे छे; त्यां रागना अकर्तारूप अकर्तृशक्ति,
रागना अभोक्तारूप अभोकतृशक्ति–एम अनंत शक्तिनी निर्मळता खीली. आ रीते
सम्यक् प्रतीतनो भाव एकलो–लूखो नथी, पण साथे आनंदनुं, प्रभुतानुं, विभुतानुं,
अकारण–कार्यत्वनुं, स्ववीर्यनुं जीवत्वनुं–एम अनंतशक्तिनुं निर्मळ परिणमन लेती
सम्यक् प्रतीत प्रगटे छे.
आवी एटले के श्रद्धापणे केवळज्ञान थयुं, –ए ज रीते सर्वदर्शीशक्ति प्रतीतमां आवी ने
हवे अल्पकाळे सर्वज्ञता ने सर्वदर्शिता आत्मामांथी प्रगट थशे–एम पण प्रतीतमां
आव्युं.