Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९२ आत्मधर्म : ४९ :
सम्यक्त्व थतां खूले छे – अनंत गुणनो खजानो
(कारतक वद चोथ तथा पांचमे गुरुदेवना हृदयना घोलनमां चैतन्य–
रत्नाकर उल्लस्यो, तेमांथी वहेलो सम्यक्त्वनो निर्मळ प्रवाह)
अनंतगुण स्वरूप आ आत्मा छे; तेनी अनुभवसहित प्रतीत ते सम्यग्दर्शन छे.
आवुं सम्यग्दर्शन थतां जेम श्रद्धागुणनी पर्याय निर्मळ थई छे तेम अनंतगुणनी
परिणति पण शुद्धपणे प्रगट थाय छे. ज्ञानगुणनुं परिणमन ते वखते स्वने पकडवानी
लायकातवाळुं थईने सम्यक्पणे प्रगट्युं; आनंदगुणनो अंश प्रगट थयो; तेम अकारण
कार्यत्व शक्तिनी निर्मळपर्याय थई, एटले के राग साथे कारण–कार्यपणुं न रह्युं; राग
मारा सम्यक्त्वादिनुं कारण, ने हुं तेनो कर्ता एवुं राग साथे कर्ताकर्मपणुं धर्मात्माने
नथी. ए ज रीते विभुत्वशक्ति पण निर्मळपणे व्यक्त थई एटले बधागुणोनी
निर्मळपर्यायमां आत्मा विभु थईने व्याप्यो. आ रीते सम्यक् श्रद्धा थतां अनंतगुणो
ऊछळे छे एटले के निर्मळ पर्यायरूप परिणमे छे; त्यां रागना अकर्तारूप अकर्तृशक्ति,
रागना अभोक्तारूप अभोकतृशक्ति–एम अनंत शक्तिनी निर्मळता खीली. आ रीते
सम्यक् प्रतीतनो भाव एकलो–लूखो नथी, पण साथे आनंदनुं, प्रभुतानुं, विभुतानुं,
अकारण–कार्यत्वनुं, स्ववीर्यनुं जीवत्वनुं–एम अनंतशक्तिनुं निर्मळ परिणमन लेती
सम्यक् प्रतीत प्रगटे छे.
आ सम्यक् प्रतीतमां जेवो पर्यायनो निर्मळ स्वाद आव्यो, तेवा निर्मळ
स्वभाववाळुं आखुं तत्त्व छे–एम प्रतीत भेगी ज आवी. सर्वज्ञता शक्ति प्रतीतमां
आवी एटले के श्रद्धापणे केवळज्ञान थयुं, –ए ज रीते सर्वदर्शीशक्ति प्रतीतमां आवी ने
हवे अल्पकाळे सर्वज्ञता ने सर्वदर्शिता आत्मामांथी प्रगट थशे–एम पण प्रतीतमां
आव्युं.
शुद्धद्रव्य प्रतीतमां आवतां, श्रद्धागुणनी जेम अनंतानंत गुणोनुं पर्यायमां शुद्ध
परिणमन थवा मांड्युं, पर्यायमां आनंदना वेदनना अंश सहित आखो आत्मा आनंद–