Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९२ आत्मधर्म : ५१ :
थतां ज स्वच्छत्व शक्तिनुं कार्य एवुं प्रगट्युं के बधा गुणोनी पर्याय अंशे स्वच्छ थई
गई. बधा गुणनुं परिणमन केवळज्ञान तरफ चाल्युं. एमां वच्चे रागनुं अवलंबन छे ज
नहि. शुभरागथी सम्यक्त्व थाय एम माननार सम्यक्त्वने ओळखतो नथी.
अहा! सम्यग्दर्शन तो केवळज्ञानने बोलावे छे के साद पाडे छे, हे केवळज्ञान,
मारा आत्मामां शीघ्र आवजे. सम्यग्दर्शन पूर्ण आत्मानी प्रतीत करीने केवळज्ञानने
बोलावे छे, केवळदर्शनने बोलावे छे, पूर्ण आनंदने बोलावे छे, अनंतगुणनी शुद्ध
पर्यायने बोलावे छे. आवुं सम्यग्दर्शन छे.
सम्यकत्वनुं अपूर्व रहस्य प्रकाशनार गुरुदेवनो जय हो.
धन्य छे तारा मार्गने
सुंदर तत्त्वचर्चा थयेली तेनो सार आ प्रवचनमां समाई
जाय छे. ए वीतरागी तत्त्वचर्चा वखते गुरुदेवे जिनमार्गना
परम प्रमोदथी कह्युं: ‘वाह रे वाह!
धन्य छे प्रभु तारा मार्गने!
‘जेम जेम हुं सूक्ष्म विचारथी ऊंडो उतरूं छुं तेम तेम
तमारा तत्त्वना चमत्कारो मारा स्वरूपनो प्रकाश करे छे.
[श्रीमद्राजचंद्र]
भव्य जीवों को श्रीगुरु उपदेश करते है कि शीघ्र
ही मोह का बंधन तौड दो, अपना सम्यक्त्वगुण ग्रहण
करो और शुद्ध अनुभवमें मस्त हो जाओ।
–पं. बनारसीदासजी