Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 56 of 73

background image
: मागशर : २४९२ आत्मधर्म : ५३ :
ज्ञक्ष्
स्वभावनी कबुलातमां विकल्पना सहारा होय नहि
जगतमां सर्वोत्कृष्ट एवी केवळज्ञान–लक्ष्मीना धारक भगवान
वर्द्धमान तीर्थंकर पावापुरीमां बिराजता हता...तेमने मोक्ष जवाने बे
दिवसनी वार हती त्यां दिव्यध्वनि बंध थई गई. लोकोए जाण्युं के
हवे भगवाननी मोक्षमां जवानी तैयारी छे. एटले भारतना ए
तेजस्वी भानु प्रत्ये परम भक्तिपूर्वक तेमनी केवळज्ञानलक्ष्मीनुं
लाखो भक्तोए पूजन कर्युं. –ए दिवस एटले आसो वद तेरस; ते
दिवसनुं आ प्रवचन छे. तेमां केवळज्ञाननो अपार महिमा बतावीने
गुरुदेव कहे छे के आवा ज्ञानने ओळखीने तेनुं पूजन–बहुमान कर तो
तारी चैतन्यलक्ष्मीना बेहद भंडार खूली जशे.
[परमात्मप्रकाश: धनतेरस: आसो वद तेरसनुं प्रवचन वीर सं. २४९१]
हे जीव! ज्ञानने आनंदनी लक्ष्मीथी भरेलो जे सर्वज्ञस्वभाव तारामां छे तेनी
साथे तुं संबंध कर....एटले के तेमां उपयोगने जोड. तारा आ परमात्मतत्त्वमां भव
नथी, भवनुं कारण नथी. सर्वज्ञतारूपी धन तारा आत्मामां भर्युं छे, केवळज्ञानरूपी
लक्ष्मीना भंडार तारामां भर्या छे, तेने श्रद्धामां लईने तेनुं पूजन कर. जुओ, आ
धनतेरशे चैतन्यनी लक्ष्मी प्रगटी. जेणे अंतरद्रष्टिथी परमात्मतत्त्वने देख्युं तेने पोतामां
ज ज्ञान–आनंदरूपी अपूर्व चैतन्यनिधान प्राप्त थया. आवी द्रष्टि करे एना आत्मामां
दीवाळी प्रगटे, –ज्ञानदीवडा प्रगटे ए ज साची दीवाळी.
भगवान महावीरप्रभु बे दिवस पछी मोक्ष पामवाना छे, तेमनी वाणी आजथी
बंध थई; अनेक राजाओए बे दिवस भगवाननी केवळज्ञानलक्ष्मीनुं महापूजन कर्युं.
जेणे केवळज्ञानस्वभावी आत्माने ओळखीने सम्यग्दर्शन–ज्ञान प्रगट कर्या तेणे
धनतेरसनुं अपूर्व लक्ष्मीपूजन कर्युं, एना आत्मामां सर्वज्ञतारूपी अनंत लक्ष्मीनो लाभ
थशे.