Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ५४ : आत्मधर्म : मागशर : २४९२
भाई, तारे मोक्ष माटे काम करवुं छे के नहि? हा; तो शुं काम करवाथी मोक्ष
थाय? के जे मोक्षस्वभावी छे एवी तारी आत्मवस्तुने अनुभवमां लईने श्रद्धा–
ज्ञानरूपी कार्य कर; तो तने मोक्षमार्ग हाथमां आवशे. बंध वगरना–राग वगरना
आत्माने अनुभवमां लईश तो मोक्ष थशे. बंधनना अनुभवथी मोक्ष केम थाय? –न
थाय. माटे मुक्त लक्षणवाळो एटले के भूतार्थस्वभाववाळो जे आत्मा तेमां एकाग्र
थईने तेने जाण–आ मोक्ष माटेनुं कार्य छे.
परमात्मतत्त्वनुं ज्ञानसामर्थ्य अचिंत्य छे. लोकालोकना समस्त ज्ञेयोने जाणी
लेवा छतां तेना सामर्थ्यनो अन्त आवी जतो नथी; ज्ञेयोनो अन्त आवी जाय छे पण
ज्ञानशक्ति तो तेनाथी विशेष छे. लोकालोकने जाणे छे तेना करतां अनंतगणुं सामर्थ्य
छे. केवळज्ञाननी अचिंत्यशक्तिना अनंतमा भागमां लोकालोक जणाई जाय छे, तो
केवळज्ञाननी पूर्ण ताकातनी शी वात! अनंत–अलोकनी विशाळता पण अचिंत्य छे पण
केवळज्ञाननी ताकात तो एनाथी अनंतगणी छे. एनी बेहद ताकातनो पार अंर्तद्रष्टि
वगर पमाय नहि.
जेम लीली वेलडी मंडप उपर चडे त्यां मंडपना छेडा सुधी वेलडी विस्तरे, छतां
हजी विस्तरवानी तेनी शक्ति कांई खूटी गई नथी. तेम केवळज्ञानरूपी वेलडी
लोकालोकना मंडप सुधी पहोंची गई, छतां तेनी जाणवानी ताकात कांई खूटी गई नथी,
तेनामां हजी बेहद शक्ति विद्यमान पडी छे, निमित्तना अभावे ए शक्ति अटकी गई
–एम कांई नथी कहेवुं, पण लोकालोकने जाणवा करतांय केवळज्ञाननी शक्ति अनंतगुणी
छे ते शक्तिनुं सामर्थ्य बताववुं छे. अहा, जेनी ज्ञानशक्तिनो एक अंश लोकालोकने
जाणी ल्ये तेना पूर्ण सामर्थ्यनी शी वात!!
लोकालोकने जाण्या ने बीजुं न जाण्युं तेथी कांई तेटलुं ज ज्ञानसामर्थ्य छे ने
विशेष ज्ञानसामर्थ्य नथी–एवो अर्थ नथी. सामर्थ्य तो घणुं छे, पण लोकालोक सिवाय
बीजा ज्ञेय ज नथी त्यां कोने जाणे? –आम कहीने ज्ञानस्वभावनी बेहद ताकातनो
महिमा बताव्यो छे. कांई निमित्ताधीनपणुं नथी बताव्युं.
जेम सिद्धनो उद्धर्वगमनस्वभाव बताववा कह्युं के लोकाग्र सुधी ऊर्ध्व गया, पछी
धर्मास्ति न होवाथी आगळ अलोकमां न गया. त्यां कांई निमित्ताधीनपणुं नथी
बताववुं, पण सिद्धनो स्वभाव ऊर्ध्वगामी छे ते बताववुं छे. अरे, संतो वस्तुनो
स्वभाव बतावे ते लक्षमां लेवाने बदले निमित्ताधीनद्रष्टिथी ऊंधा अर्थ करे ए