Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ५८ : आत्मधर्म : मागशर : २४९२
जंबुद्वीपमां एक मेरूपर्वत छे एनुं नाम सुदर्शनमेरु; बीजा धातकीखंड द्वीपमां बे
मेरूपर्वत छे–एनां नाम विजयमेरु अने अचलमेरु; त्रीजा पुष्करवर द्वीपमां बे मेरु–
पर्वत छे–एनां नाम मंदारमेरु अने विद्युन्माली मेरु. आ पांच मेरूपर्वत उपर ते ते
क्षेत्रसंबंधी तीर्थंकरोनो जन्माभिषेक थाय छे; दरेक मेरुना वैभवरूप ७८ शाश्वत
जिनालयो छे. प्रथम सुदर्शनमेरु एकलाख योजन (४०, ००, ००००० माईल) ऊंचो
छे. बाकीना ४ मेरुओ ८४००० योजन ऊंचा छे. सुदर्शनमेरुनी टोच पछी एक वाळ
जेटली जग्या छोडीने तरत पहेलुं स्वर्ग आवेल छे. ४प८ शाश्वत जिनमंदिरोमांथी
आपणा आ भरतक्षेत्रना भागे एक शाश्वतजिनालय आवे छे. अने ते विज्यार्द्ध पर्वत
उपर छे.
पहेलो जंबुद्वीप, बीजो धातकीखंड, अने त्रीजो पुष्करद्वीपनो अडधो भाग, ए
रीते अढी द्वीप जेटलुं क्षेत्र–जे ४प लाखयोजन व्यासवाळुं गोळाकार, अने एक लाख
जोजन ऊंचुं छे तेटलुं मनुष्यक्षेत्र छे. सामान्यपणे आ अढी द्वीप बहार मनुष्योनुं गमन
नथी. आठमा नंदीश्वर द्वीप वगेरेना जिनालयमां मनुष्यो जई शकता नथी, देवो त्यां
भक्ति पूर्वक दर्शन–पूजन करे छे. त्यांना रत्नमय जिनबिंबोनी अद्भुत वीतरागता
देखतां घणा देवो त्यां अंतर्मुख थईने सम्यक्त्व पण पामे छे.
जाने को नहीं सक्ति हमारी अरु पूजन मन भाई
यातें मनवचकाय शुद्धतें अर्ध जजुं जिनराई
हे बंधु!
संतोए तने तारो जे परम स्वभाव
संभळाव्यो, ने तें प्रसन्नताथी तेनी
हा पाडी....तो हवे तेना अनुभवमां
विलंब करीश नहीं.