Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ६६ : आत्मधर्म : मागशर : २४९२
भोपाल शहेरमां
भोपाल शहेरमां सिद्धचक्रविधानना उत्सव प्रसंगनी साथे मध्यप्रांतिय दि. जैन
मुमुक्षुमंडळनी स्थापना अने मिटिंग माननीय प्रमुख श्री नवनीतलालभाई सी. झवेरीना
अध्यक्षपदे ता. ७ नवेम्बरना रोज थयेली; तेमां मध्यभारतना मुख्य शहेरोना अनेक
आगेवानोए भाग लीधो हतो. मध्य भारतना विकास प्रधान श्री मिश्रिलालजी गंगवाले
आ अधिवेशननुं उद्घाटन कर्युं हतुं. आ प्रसंगे अध्यक्षस्थानेथी भाषण करतां श्री
नवनीतलालभाईए कह्युं हतुं के–
“प्रत्येक मुमुक्षुका कर्तव्य होगा कि वह नियमितरूपसे सामुहिक स्वाध्याय और
तत्त्वविवेक एवं सौजन्य और सदाचारको अपने जीवनमें उतारे, और ईसका अन्य
बंधुओमें अधिकसे अधिक प्रचर करे. एक मुमुक्षु भाईका जीवन शुद्ध सात्विक एवं आदर्श
होना आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य है.”
“बाह्यमें अनेक शुभ प्रवृत्तियोंके होते हुए भी आत्मा शान्तिका अनुभव नहीं कर
पाते थे, कयोंकि शान्ति आत्माका वास्तविक स्वभाव है और वह वस्तुस्वरूपके निर्णय
करनेके पश्चात ही प्राप्त हो सकती है! वस्तुस्वरूपका निर्णय करनेके वास्ते चारो
अनुयोगोंका गहराई के साथ अध्ययन एवं मनन करनेकी अत्यन्त आवश्यकता है.”
“आज तक अनंत तीर्थंकर एव भावलिंगी दिगंबर सन्तोंने डंकेकी चोट यह
उद्घोषणा की थी कि आत्मकल्याणके लिये यह वीतरागका मार्ग ही सर्वोपयोगी प्रशस्त
मार्ग है, जिनागममेंसे ईस तत्त्वरहस्यकी शोध और खोज करनेके लिये गंभीर स्वाध्याय
एवं मननकी आवश्यकता होती है! ईसलिये स्वाध्यायकी प्रवृत्तिको अधिकसे अधिक प्रचार
करनेकी ईस युगमें” अत्यन्त आवश्यकता है. ! ” + + + + भेदविज्ञानकी प्राप्ति ही
मनुष्यमात्रकी सच्ची सार्थकता है, ईसलिये सब कूछ न्योच्छावर करके भी प्रत्येक
मनुष्यप्राणीको तत्त्वकौतूहली बनता अत्यंत आवश्यक है.”
“यहांपर हमलोग ईसीलिये एकत्र हुए है कि आज निर्णय करें कि ईस जीवनमें
हमको त्रिकाल सत्यका निर्णय करके दूसरोमें भी ईसका प्रचार करना है.”
* जिनमंदिरनुं शिलान्यास:
रणासण (गुजरात) मां श्री दिगंबर जिनमंदिरनुं शिलान्यास मागशर शुद दशमे
थयुं हतुं; अनेक जिज्ञासुओए तेमां उत्साहपूर्वक भाग लीधो हतो.