Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 72 of 73

background image
आत्मधर्मना आ अंक बाबत
मागशर मासनो अंक तैयार थवामां संजोगवशात् जरा विलंब थयो; ते प्रगट
थवानी तैयारी हती, ते दरमियान गुरुदेवना प्रवचनोमां ने चर्चाओमां अनेकविध अवनवा
विषयो आव्या, ने एमांना केटलाक खास लेखो आत्मधर्मना जिज्ञासु पाठकोने तुरत पहोंचे
एम धारीने पोष मास माटेनुं मेटर पण आ अंकमां ज भेळवी दीधुं एटले पोष मासनो अंक
वहेलो प्रगट करवानुं नक्क्ी थयुं. ते अनुसार आत्मधर्मनो आ अंक मागशर ने पोष ए बंने
मासना संयुक्त अंक तरीके प्रसिद्ध करवामां आव्यो छे. आ रीते पोष मासनो अंक जरा
वहेलो करवा खातर मागशर मासनो अंक जरा मोडो कर्यो. पण आ संयुक्त–अंकमां आवेला
ताजेतरना खास प्रवचनो वगेरे वांचता जिज्ञासुओने जरूर प्रसन्नता थशे.
आत्मधर्मनो हवे पछीनो अंक माह मासनो ता. २० जान्युआरीए पोस्ट थशे. ने
त्यार पछी नियमितपणे दरेक महिनानी बराबर वीसमी तारीखे अंक पोस्ट थशे.
* * *
शुद्धी
(१) आत्मधर्म अंक २प९ पा. ६२ लाईन ७–८ मां–
आत्मामां ज्ञानादि जे अनंत गुणो छे तेओ पोताना निर्मळभावमां अतद्रूपपणे
परिणमे छे–एम भूलथी छपायुं छे तेने बदले आ प्रमाणे सुधारीने वांचवुं–आत्मामां ज्ञानादि
जे अनंतगुणो छे तेओ पोताना निर्मळभावमां तद्रूपपणे अने रागादिमां अत्द्रूपपणे
परिणमे छे.
(२) आत्मधर्म अंक २४७ पृ. ७४ लाईन १–२ मां–
“आवो केवळज्ञानस्वभाव जेने.... प्रिय लागे नहि” एम भूलथी छापेल छे, तेने
बदले आ प्रमाणे वांचवुं– “आवो केवळज्ञानस्वभाव जेने प्रिय लागे तेने जगतमां बीजुं
कांई प्रिय लागे नहि.”
(३) अध्यात्मसन्देश पुस्तक पानुं ४९ छेल्ली लाईनमां–
“स्वानुभव वखते सम्यक्त्वमां कांई मलिनता थई गई–एम नथी.” ए प्रमाणे
भूल वाळुं छपायेल छे तेने बदले आ प्रमाणे वांचवुं– “स्वानुभव वखते सम्यक्त्वमां कांई
विशेषता थई के शुभाशुभ वखते सम्यक्त्वमां कांई मलिनता थई गई–एम नथी.”
[जिज्ञासु पाठकोने विनति: आत्मधर्मना लेखनमां अने प्रीन्टींगमां जो के पूरती
चीवट राखवामां आवे छे, छतां प्रवास वगेरे कारणे कोई वार आवी भूलो रही जाय ते –
आपना ध्यानमां आवे तो ते प्रत्ये अमारुं लक्ष दोरवा विनति छे. तथा ‘आत्मधर्म’ ना
विकासने लगता जे कांई सलाह–सूचना आप मोकलशो तेना प्रत्ये पण पूरतुं ध्यान
आपवामां आवशे. – सं.]