Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९२ आत्मधर्म : ७ :
तेथी तो कहे छे के हे जीव! सुख अंतरमां छे, बहारमां न शोध. जगतने राजी करवामां,
ने जगतथी राजी थवामां जीवे अनंतकाळ गुमाव्यो, पण एमां किंचित् सुख नथी,
अंतर्मुख रुचिवडे तारा आत्माने राजी कर, ने आत्माना स्वभावथी ज तुं राजी था, तो
तने साचुं सुख अनुभवाशे. संयोगवडे राजी न था, रागवडे राजी न था, आनंदना
भंडार तारामां भर्या छे तेना वडे तुं राजी था, प्रसन्न था, आनंदित था.
चैतन्यनुं सुख जेणे देख्युं ते धर्मात्मा जगतना कोई विषयोमां ललचाता नथी.
चैतन्यमां अनंतसुखना भंडार भर्या छे ते धर्मीने एवा ललचावे छे के धर्मी तेनो ज
स्वाद लेवामां मशगुल थाय छे अनंतसुखना धाममां जे ललचाया ते संसारना कोई
विषयसुखोथी ललचाय नहि. संसारना पदार्थोनी लालसा एने छूटी गई ने चैतन्यना
आनंदना अनुभवनी उत्कृष्ट लालसा प्रीति) जागी, तेमां मशगुल थई–एकाग्र थई
अतीन्द्रिय आनंदने अनुभवे छे. ते ज सुखी छे.
तीर्थंकर जिनवरोने मुनिदशामां जेवो निर्विकल्प आनंद आव्यो एवो ज आनंद
निर्विकल्प समाधिमां धर्मी जीवो अनुभवे छे. निज शुद्धात्माना दर्शनथी जे परम
अद्भुत सुख जिनवरोने मुनिदशामां होय छे ते सुख वीतरागभावनामां परिणत
मुनिओ निज शुद्धात्माने जाणता थका अनुभवे छे, ने सम्यग्द्रष्टि पण स्वानुभवमां
एवा ज सुखने अनुभवे छे.
जुओ, तीर्थंकरनां उत्तम पुण्य ने उत्तम सामग्री, पण तेमने तेनुं कांई सुख
नथी, सुख तो तेमने पोताना स्वभावमां एकाग्रतानुं छे. संयोगनुं जेटलुं लक्ष छे तेटली
तो तीर्थंकर थनार जीवने पण आकुळता छे, ने ज्यारे ते पोताना स्वभावमां लीन थाय
छे त्यारे वीतरागभावनामां तेमने परमसुख अनुभवाय छे. तीर्थंकरना आनंदनो
दाखलो आपीने कहे छे के जे जीव निजस्वरूपमां लीन थाय छे ते जीवने तीर्थंकर जेवुं ज
सुख थाय छे. स्वरूपमां लीन थतां तीर्थंकरने वधुआनंद ने बीजाने थोडो आनंद एम
नथी. एक तीर्थंकर दीक्षा लईने निजस्वरूपमां लीन थाय, ने एक कठियारो दीक्षा लईने
निजस्वरूपमां लीन थाय, ते बंनेने सरखो आनंद छे, जेवो आनंद तीर्थंकरने छे एवो
ज आनंद कठियाराने छे, केमके बंनेनो आनंद सामग्रीथी पार छे, बंनेनो आनंद
स्वभावथी प्रगटेलो छे. जे कोई जीव निजस्वरूपमां लीन थाय ते दरेक जीवने आवो
आनंद प्रगटे छे, तेमां बहारनी सगवडता अगवडताना भेदे कांई भेद नथी. माटे हे
जीव! तुं सामग्रीनो मोह छोडीने सुखना धाम एवा तारा आत्मस्वरूपनी रुचि कर;
अतीन्द्रिय आनंदथी भरपूर भगवानने तारा नयनोमां वसाव.