नथी. आवा आनंदनो अनुभव जेने थाय तेने मोक्षमार्ग थयो कहेवाय. मोक्षमार्ग कहो
के आनंदनो अनुभव कहो.
मोक्षमार्ग तो आनंदना वेदनरूप छे, बंधमार्ग तो दुःखरूप छे.
पूर्णआनंदस्वरूप मोक्ष, तेना कारणरूप जे मोक्षमार्ग छे ते पण आनंदरूप छे.
आनंदरूप छे, आनंदने अनुभवता अनुभवता तेओ मोक्षमां चाल्या जाय
छे.....आनंदमां रमता रमता मोक्षने साधे छे. ए मुनिपणामां दुःख नथी. मुनिपणामां
जेने दुःख लागे तेणे मोक्षमार्गने जाण्यो नथी. मुनिपणुं एटले तो छूटकारानो मार्ग,
एमां ते दुःख होय के सुख? अतीन्द्रिय सुखमां जे झुले एनुं नाम मुनि छे. मुनि तो
अनंतसुखना धाम एवा निजात्मामां लीन थईने आनंदना झरणांने पीए छे.
सुखबुद्धि छे, एटले संयोग वगरना मुनि जाणे दुःखी हशे एम एने लागे छे. एणे
नथी तो मुनिने ओळख्या, के नथी मोक्षमार्गने जाण्यो. अरे भाई, विषयो तरफनी
मृगतृष्णावाळा जीवो तो मोहाग्निमां बळी रह्या छे, ते तो दुःखी छे ने मुनिवरो बाह्य
सामग्री वगर पण निजस्वरूपना निराकूळ आनंदने वेदी रह्या छे, सुखना दरियामां
डूबकी मारी छे, एना जेवुं सुखी आ जगतमां बीजुं कोई नथी.
तेने सुख के आनंद क््यांथी थाय? एने मोक्षमार्ग क्यांथी प्रगटे? अनुकूळ संयोगवडे हुं
सुखी छुं एम जे माने छे ते जीव पोताना सुखस्वभावनो अनादर करे छे; संयोगथी हुं
सुखी एनो अर्थ ए के मारामां सुख नथी,–आवी बुद्धिवाळा जीवने आत्मानुं सुख कदी
मळे नहि, ते सुखने माटे बाह्यविषयोमां झावां नाख्या करे ने दुःखी ज थया करे सुखी
तो त्यारे ज थाय के बाह्यविषयोथी विमुख थईने आत्मस्वरूपमां ऊतरे.