Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९२ आत्मधर्म : ९ :
(परमात्मप्रकाश गा. ७प ना प्रवचनमांथी)
आत्माना शुद्ध उपयोगनी साथे रहेनार जे सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान ने
सम्यक्चारित्र, आवा भावस्वरूप, शुद्ध आत्मानुं तुं चिंतन कर. जे श्रद्धाए शुद्ध
आत्माने प्रतीतमां लीधो ते श्रद्धानी किंमत छे, जे ज्ञाने स्वसन्मुख थईने आत्माने
जाण्यो ते ज्ञाननी किंमत छे, ने जे चारित्र स्वसन्मुख थईने स्वरूपमां ठर्युं ते चारित्रनी
किंमत छे.–आवा सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते किंमती छे तेथी ते त्रणने रत्न कह्यां छे;
मोक्षमार्गमां तो आवा रत्नत्रय छे. ए रत्नोनी ज खरी किंमत छे. व्यवहारना
विकल्पोनी के बहारनां जाणपणानी खरी किंमत नथी.
भाई, विकल्पोने संकेलीने अंतर्मुख निर्विकल्प श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रवडे तारा
आत्माने चिंतनमां ले. बहारना देखेला–सांभळेला–अनुभवेला पदार्थोने भूलीने,
अंतरनी चैतन्य वस्तुनुं विस्मय लावीने तेने देखे जाण–अनुभव.–ए ज रत्नत्रयरूप
स्वसमयमां स्थिति छे. शुद्ध रत्नत्रय ते अतीन्द्रिय आनंदमय छे, अतीन्द्रिय आनंद
तेमां नीतरे छे. आवा रत्नत्रयमां स्थित, अतीन्द्रिय आनंद साथे तन्मय एवो आत्मा
ज उपादेय छे. अभेद रत्नत्रयवडे ज ते उपादेय थाय छे, विकल्पवडे ते उपादेय थतो
नथी.
जे निकट मोक्षमागी छे, जे अभेद रत्नत्रयना आराधक छे ते जीवने आवो
आत्मा ज उपादेय छे. जे परिणामे अंतर्मुख थईने आवा आत्माने पकडयो ते
परिणामनी ज किंमत छे.
जे परिणामे शुद्धात्माने प्रतीतमां लीधो ते श्रद्धापरिणाम ए महा किंमती रत्न
छे, मोक्षमार्गनुं ते पहेलुं रत्न छे.
जे परिणामे अंतरमां वळीने शुद्धात्माने पोतानो ज्ञेय बनाव्यो ते ज्ञानपरिणाम
महा किंमति छे, ते ज मोक्षमार्गनुं बीजुं रत्न सम्यग्ज्ञान छे.
जे परिणाम स्वमां लीन थईने अतीन्द्रिय आनंदमां ठर्या ते परिणाम महा
किंमती छे, ते मोक्षमार्गनुं चारित्र रत्न छे.