Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : माह : २४९२
अहो, आवा आ रत्न.......तेनी किंमत जगतने भासती नथी. जेमां विकल्पनो
डाघ नथी एवा आ शुद्ध रत्नत्रयने धारण करनार जीव अत्यंत निकट भव्य छे. ते
चैतन्यना अतीन्द्रिय आनंदना चारा चरवामां एवो मशगुल छे के ऊंचुं माथुं करीने
बहारमां जोतो नथी, विकल्पनुं उत्थान अंदरमां थतुं नथी. पोते पोतामां लीन थईने
स्वरूपने वेदे छे.–एणे आत्माने उपादेय कर्यो कहेवाय. ने शुद्ध आत्माने उपादेय करनारा
आवा परिणाम ते ज खरा किंमती परिणाम छे.
वैराग्य –
* वैराग्यवंत जीवने रागनां बंधन रोकी शकता नथी.
* वैराग्यमां अनुपम सुख छे.
* ‘जीव रकत बांधे कर्मने, वैराग्यप्राप्त मुकाय छे’
* ‘सुखकी सहेली है अकेली उदासीनता; अध्यात्मनी जननी ते उदासीनता.’
* ‘ज्ञानकला जिसके घट जागी ते जगमांहि सहज वैरागी’
* वैराग्यवंत जीवने क््यांय भय नथी, ते सर्वत्र निर्भय छे.
* वैराग्यरूपी बख्तर सर्वप्रसंगे जीवने कषायोथी बचावे छे.
* ‘तेथी न करवो राग जरीये क््यांय पण मोक्षेच्छुए....’
* साचा वैराग्य वगर ज्ञाननुं परिणमन थतुं नथी.
* रागथीविरकत थईने परिणतिनो वेग स्वभाव तरफ वळ्‌यो
एज साचो वैराग्य.
* अस्ति–नास्तिनी जेम ज्ञान ने वैराग्य मोक्षमार्गमां एकबीजाना
जोडीदार छे. एवा वैराग्यपरिणत सन्तोने नमस्कार हो.