Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : माह : २४९२
जुओ, आ वस्तुविज्ञानना महा सिद्धांतो! आ २११मा कळशमां चार
बोल वडे चारे पडखेथी स्वतंत्रता सिद्ध करी छे. विदेशना अज्ञानना भणतर
पाछळ हेरान थाय छे एना करतां सर्वज्ञदेवे कहेलुं आ परम सत्य वीतरागी
विज्ञान समजे तो अपूर्व कल्याण थाय.
(१) परिणाम ते कर्म; आ एक वात.
(२) ते परिणाम कोनुं? के परिणामी वस्तुनुं परिणाम छे, बीजानुं
नहि. आ बीजो बोल, तेनो घणो विस्तार कर्यो.
हवे आ त्रीजा बोलमां कहे छे के परिणामी वगर परिणाम होय नहि.
परिणामी वस्तुथी जुदा बीजे क््यांय परिणाम थाय एम बने नहि.
परिणामी–वस्तुमां ज तेनां परिणाम थाय छे, एटले परिणामी वस्तु ते कर्ता
छे, तेना वगर कार्य होतुं नथी. जुओ, आमां निमित्त वगर कार्य न होय–एम
न कह्युं. निमित्त निमित्तमां रह्युं, ते कांई आ कार्यमां आवी जतुं नथी. माटे
निमित्त विनानुं कार्य छे पण परिणामी वगरनुं कार्य होय नहि. निमित्त भले
हो, पण तेनुं अस्तित्व ते निमित्तमां छे, आमां तेनुं अस्तित्व नथी. परिणामी
वस्तुनी सत्तामां ज तेनुं कार्य थाय छे. आत्मा विना सम्यक्त्वादि परिणाम न
होय. पोताना बधा परिणामनो आत्मा कर्ता छे, तेना वगर कर्म न होय.
–कर्म
कर्तृशून्यं न भवति। दरेक पदार्थनी अवस्था ते ते पदार्थ वगर होती नथी.
सोनुं नथी ने घरेणां बनी गया, वस्तु नथी ने अवस्था थई गई–एम बने
नहि. अवस्था छे ते त्रिकाळी वस्तुने जाहेर करे छे–प्रसिद्ध करे छे के आ
अवस्था आ वस्तुनी छे.
जेमके जडकर्मरूपे पुद्गलो थाय छे, ते कर्मपरिणाम कर्ता वगर न होय.
हवे तेनो कर्ता कोण? के ते पुद्गल कर्मरूपे परिणमनारा रजकणो ज कर्ता छे;
आत्मा तेनो कर्ता नथी.