जडकर्म आत्माने विकार करावे–एवुं वस्तुस्वरूपमां नथी.
मंदकषायना परिणाम सम्यक्त्वनो आधार थाय एवुं वस्तुस्वरूपमां
छतां अज्ञानी एम माने छे, ए तो बधा ऊंधा अन्याय छे, भाई, तारा
तारा आत्माने बहु दुःख थशे,–एम सन्तोने तो करुणा आवे छे. सन्तो नथी
ईच्छता के कोई जीवने दुःख थाय. जगतमां बधा जीवो सत्य स्वरूप समजे ने
दुःखथी छूटीने सुख पामे एवी भावना छे.
नथी. वस्तुनुं जे स्वरूप छे ते त्रण काळमां आघुंपाछुं नहि फरे. कोई जीव
अज्ञानथी एने विपरीत माने तेथी कांई सत्य फरी न जाय. कोई समजे के न
समजे, सत्य तो सदा सत्यरूपे ज रहेशे, ते कदी फरशे नहि. जेम छे तेम तेने जे
समजशे ते पोतानुं कल्याण करी जशे. ने न समजे एनी शी वात? ए तो
संसारमां रखडी ज रह्या छे.
पण बापु, ए तो वस्तुस्वरूप छे. त्रणलोकना नाथ सर्वज्ञ परमात्मा पण
दिव्यध्वनिमां एम ज कहे छे के ज्ञान आत्माना आश्रये थाय छे, ज्ञान ते
आत्मानुं कार्य छे. दिव्यध्वनिना परमाणुनुं ते कार्य नथी. ज्ञानकार्यनो कर्ता
आत्मा छे,–नहि के वाणीना रजकणो जे पदार्थना जे गुणनुं जे वर्तमान होय
ते बीजा पदार्थना के बीजा गुणना आश्रये होतुं नथी. तेनो कर्ता