Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : माह : २४९२
कोण? के वस्तु पोते, कर्ता अने तेनुं कार्य बंने एकज वस्तुमां होवानो नियम
छे, ते भिन्न वस्तुमां होतां नथी.
आ लाकडी ऊंची थई ते कार्य; ते कोनुं कार्य? के कर्तानुं कार्य; कर्ता वगर
कार्य न होय. कर्ता कोण? लाकडीनी आ अवस्थाना कर्ता लाकडीना रजकणो
ज छे. आ हाथ, आंगळी के ईच्छा तेनो कर्ता नथी.
हवे अंदरनुं सूक्ष्म द्रष्टांत लईए; कोई आत्मामां ईच्छा अने
सम्यग्ज्ञान बंने परिणाम वर्ते छे; त्यां ईच्छाना आधारे सम्यग्ज्ञान नथी.
ईच्छा ते सम्यग्ज्ञाननी कर्ता नथी. आत्मा ज कर्ता थईने ते कार्यने करे छे.
कर्ता वगरनुं कर्म नथी ने बीजो कोई कर्ता नथी, एटले जीवकर्ता वडे ज्ञानकार्य
थाय छे. आ प्रमाणे बधा पदार्थोना बधा कार्योमां ते ते पदार्थनुं ज कर्तापणुं छे
एम समजी लेवुं.
जुओ, भाई! आ तो सर्वज्ञ भगवानना घरनी वात छे.....महा
कल्याणनी वात छे, ते सांभळीने राजी थवा जेवुं छे. अहा! सन्तोए
वस्तुस्वरूप समजावीने मार्ग स्पष्ट करी दीधो. संतोए बधो मार्ग सहेलो ने
सीधोसट करी दीधो, तेमां वच्ये क््यांय अटकवापणुं नथी. परथी छूटुं आवुं
स्पष्ट वस्तुस्वरूप समजे तो मोक्ष थई जाय. बहारथी तेमज अंदरथी आवुं
भेदज्ञान समजतां मोक्ष तो हथेळीमां आवी जाय छे. हुं परथी तो छूटो ने
मारामां एक गुणनुं कार्य बीजा गुणथी नहि–आ महासिद्धांत समजतां
स्वाश्रयभावे अपूर्व कल्याण प्रगटे छे.
कर्म तेना कर्ता वगर होतुं नथी–ए वात त्रीजा बोलमां करी; ने चोथा
बोलमां कर्तानी (–वस्तुनी) स्थिति सदाय एकसरखी होती नथी पण नवा
नवा परिणामरूपे ते बदल्या करे छे–ए वात कहेशे. दर वखते प्रवचनमां आ
चोथा बोलनो विशेष विस्तार थाय छे, आ वखते बीजा बोलनो विशेष
विस्तार आव्यो.