: माह : २४९२ आत्मधर्म : २१ :
कर्ता वगर कार्य होतुं नथी ए सिद्धांत छे; त्यां कोई कहे के आ जगत ते
कार्य छे ने ईश्वर तेनो कर्ता छे तो ए वात वस्तुस्वरूपनी नथी. दरेक वस्तु
पोते ज पोतानी पर्यायनो ईश्वर छे, ने ते ज कर्ता छे, एनाथी भिन्न बीजो
कोई ईश्वर के बीजो कोई पदार्थ कर्ता नथी. पर्याय ते कार्य ने पदार्थ तेनो कर्ता.
कर्ता वगर कार्य नथी, ने बीजो कोई कर्ता नथी.
कोईपण अवस्था थाय–शुद्धअवस्था, विकारी अवस्था के जड अवस्था–
तेनो कर्ता न होय एम बने नहि, तेमज बीजो कोईकर्ता होय–एम पण न
बने.
–तो शुं भगवान तेना कर्ता छे?
–हा, भगवान कर्ता खरा, पण क्यां भगवान? कोई बीजा भगवान
नहि पण आ आत्मा पोते भगवान छे ते ज कर्ता थईने पोताना शुद्ध अशुद्ध
परिणामने करे छे. जडना परिणामने जडपदार्थ करे छे. एना भगवान ए.
दरेक वस्तु पोतपोतानी अवस्थाने रचनार ईश्वर छे.
संयोग वगर अवस्था न थाय–एम नहि, परंतु वस्तु परिणम्या वगर
अवस्था न थाय–ए सिद्धांत छे. पोतानी पर्यायना कर्तृत्वनो अधिकार वस्तुनो
पोतानो छे, परनो तेमां अधिकार नथी.
ईच्छारूपी कार्य थयुं तो तेनो कर्ता आत्मद्रव्य छे.
ते वखते तेनुं ज्ञान थयुं, ते ज्ञाननो कर्ता आत्मद्रव्य छे.
पूर्वनी पर्यायमां तीव्र राग हतो माटे वर्तमानमां राग थयो–एम पूर्व
पर्यायमां आ पर्यायनुं कर्तापणुं नथी. वर्तमानमां आत्मा तेवा भावरूपे
परिणमीने पोते कर्ता थयो छे. ए ज रीते ज्ञानपरिणाम, श्रद्धापरिणाम,
आनंदपरिणाम, ते बधानो कर्ता आत्मा छे. पर तो नहि, पूर्वना परिणाम