आत्मद्रव्य पोते कर्ता छे. शास्त्रमां पूर्व पर्यायने कोईवार उपादान कहे छे, ते
तो पूर्व–पछीनी संधि बताववा माटे कह्युं छे. पण पर्यायनुं कर्ता तो ते वखते
वर्ततुं द्रव्य छे, ते ज परिणामी थईने कार्यरूपे परिणम्युं छे. जे समये
सम्यग्दर्शन–पर्याय थई ते समये तेनो कर्ता आत्मा ज छे. पूर्वनी ईच्छा,
वीतरागनी वाणी के शास्त्र–ते कोई खरेखर आ सम्यग्दर्शन कर्ता नथी.
परिणाम एक ज वस्तुना होवा छतां तेमने कर्ता–कर्मपणुं नथी. कर्ता तो
परिणामी वस्तु छे.
ज्ञान थयुं तेनो कर्ता आत्मा छे, ते ज्ञाननो कर्ता खाटी–खारी अवस्था नथी.
केटली स्वतंत्रता!! ए ज रीते शरीरमां रोगादि जे कार्य थाय तेना कर्ता ते
पुद्गलो छे, आत्मा नहि; ने ते शरीरनी हालतनुं जे ज्ञान थयुं तेनो कर्ता
आत्मा छे. आत्मा कर्ता थईने ज्ञानपरिणामने करे छे पण शरीरनी
अवस्थाने ते करतो नथी.
अनंतगुणो; स्पर्शनी चीकणी वगेरे अवस्था, रंगनी काळी वगेरे अवस्था, ते
ते अवस्थानुं कर्ता परमाणुद्रव्य छे; चीकणी अवस्था ते काळी अवस्थानी कर्ता
नथी.
आत्मा पोते छे. मनुष्य–