Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 25 of 55

background image
: २२ : आत्मधर्म : माह : २४९२
तो नहि तेम ज वर्तमान तेनी साथे वर्तता बीजा परिणाम पण कर्ता नहि,
आत्मद्रव्य पोते कर्ता छे. शास्त्रमां पूर्व पर्यायने कोईवार उपादान कहे छे, ते
तो पूर्व–पछीनी संधि बताववा माटे कह्युं छे. पण पर्यायनुं कर्ता तो ते वखते
वर्ततुं द्रव्य छे, ते ज परिणामी थईने कार्यरूपे परिणम्युं छे. जे समये
सम्यग्दर्शन–पर्याय थई ते समये तेनो कर्ता आत्मा ज छे. पूर्वनी ईच्छा,
वीतरागनी वाणी के शास्त्र–ते कोई खरेखर आ सम्यग्दर्शन कर्ता नथी.
ए ज रीते ज्ञानकार्यनो कर्ता पण आत्मा ज छे. ईच्छानुं ज्ञान थयुं,–त्यां
ते ज्ञान कांई ईच्छानुं कार्य नथी, ने ईच्छा ते ज्ञाननुं कार्य नथी. बंने
परिणाम एक ज वस्तुना होवा छतां तेमने कर्ता–कर्मपणुं नथी. कर्ता तो
परिणामी वस्तु छे.
पुद्गलमां खाटी खारी अवस्था हती ने ज्ञाने ते प्रमाणे जाण्युं. त्या
खाटुं–खारुं ते पुद्गलना परिणाम छे, ने पुद्गलो तेना कर्ता छे; ते संबंधी जे
ज्ञान थयुं तेनो कर्ता आत्मा छे, ते ज्ञाननो कर्ता खाटी–खारी अवस्था नथी.
केटली स्वतंत्रता!! ए ज रीते शरीरमां रोगादि जे कार्य थाय तेना कर्ता ते
पुद्गलो छे, आत्मा नहि; ने ते शरीरनी हालतनुं जे ज्ञान थयुं तेनो कर्ता
आत्मा छे. आत्मा कर्ता थईने ज्ञानपरिणामने करे छे पण शरीरनी
अवस्थाने ते करतो नथी.
आ तो परमेश्वर थवा माटे परमेश्वरना घरनी वात छे. परमेश्वर
सर्वज्ञदेवे कहेलुं आ वस्तुस्वरूप छे.
जगतमां चेतन के जड अनंत पदार्थो अनंतपणे कायम टकीने
पोतपोताना वर्तमानकार्यने करे छे. एकेक परमाणुमां स्पर्श–रंग वगेरे
अनंतगुणो; स्पर्शनी चीकणी वगेरे अवस्था, रंगनी काळी वगेरे अवस्था, ते
ते अवस्थानुं कर्ता परमाणुद्रव्य छे; चीकणी अवस्था ते काळी अवस्थानी कर्ता
नथी.
ए रीते आत्मामां–दरेक आत्मामां अनंत गुणो; ज्ञानमां
केवळज्ञानपर्यायरूप कार्य थयुं, आनंदमां पूर्ण आनंद प्रगट्यो; तेनो कर्ता
आत्मा पोते छे. मनुष्य–