Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९२ आत्मधर्म : २३ :
देह के मजबुत संकलनना कारणे ते कार्य थयुं–एम नथी, पूर्वनी मोक्षमार्ग
पर्यायना आधारे ते कार्य थयुं एम नथी, ज्ञान ने आनंदना परिणाम
एकबीजाना आश्रये पण नथी, द्रव्य ज परिणमीने ते कार्यनुं कर्ता थयुं छे.
भगवान आत्मा पोते ज पोताना केवळज्ञानादि कार्यनो कर्ता छे, कोई बीजो
नहि. आ त्रीजो बोल थयो.
(४) वस्तुनी सदा एकरूपे स्थिति रहेती नथी
सर्वज्ञदेवे जोयेल वस्तुनुं स्वरूप एवुं छे के ते कायम टकीने क्षणे क्षणे
नवी अवस्थारूपे परिणम्या करे. अवस्था बदल्या वगर एम ने एम कूटस्थ
ज रहे–एवुं वस्तुनुं स्वरूप नथी. वस्तु द्रव्य–पर्यायस्वरूप छे, एटले एमां
सर्वथा एकलुं नित्यपणुं नथी, पर्यायथी पलटावापणुं पण छे. वस्तु पोते ज
पोतानी पर्यायरूपे पलटे छे, कोई बीजो तेने पलटावे–एम नथी. नवी नवी
पर्यायरूपे थवुं ते वस्तुनो पोतानो स्वभाव छे, तो बीजो तेने शुं करे? आ
संयोगोने कारणे आ पर्याय थई–एम संयोगने लीधे जे पर्याय माने छे तेणे
वस्तुना परिणमन स्वभावने जाण्यो नथी. भाई, तुं संयोगथी न जो, वस्तुना
स्वभावने जो. वस्तुनो स्वभाव ज एवो छे के ते कायम एकरूपे न रहे.
द्रव्यपणे एकरूप रहे पण पर्यायपणे एकरूपे न रहे, पलटाया ज करे–एवुं
वस्तुनुं स्वरूप छे.
आ चार बोलथी एम समजाव्युं के वस्तु पोते ज पोताना परिणामरूप
कार्यनी कर्ता छे,–आ चोक्कस सिद्धान्त छे.
आ पुस्तकनुं पानुं पहेलां आम हतुं ने पछी फर्युं, त्या हाथ अडयो माटे
ते फर्युं एम नथी; पण ते पानानां रजकणोमां ज एवो स्वभाव छे के सदा
एकरूपे तेनी स्थिति न रहे, तेनी हालत बदलाया ज करे. तेथी ते स्वयं पहेली
अवस्था छोडीने बीजी अवस्थारूप थया छे, बीजाने लीधे नहि. वस्तुमां भिन्न
भिन्न अवस्था थया ज करे छे; त्यां संयोगने कारणे ते भिन्न अवस्था थई–
एवो अज्ञानीनो भ्रम छे केमके ते संयोगने ज जुए छे पण वस्तुना
स्वभावने देखतो नथी. वस्तु पोते परिणमन स्वभाववाळी छे एटले एक ज
पर्यायरूपे ते रह्या