पर्यायना आधारे ते कार्य थयुं एम नथी, ज्ञान ने आनंदना परिणाम
एकबीजाना आश्रये पण नथी, द्रव्य ज परिणमीने ते कार्यनुं कर्ता थयुं छे.
भगवान आत्मा पोते ज पोताना केवळज्ञानादि कार्यनो कर्ता छे, कोई बीजो
नहि. आ त्रीजो बोल थयो.
ज रहे–एवुं वस्तुनुं स्वरूप नथी. वस्तु द्रव्य–पर्यायस्वरूप छे, एटले एमां
सर्वथा एकलुं नित्यपणुं नथी, पर्यायथी पलटावापणुं पण छे. वस्तु पोते ज
पोतानी पर्यायरूपे पलटे छे, कोई बीजो तेने पलटावे–एम नथी. नवी नवी
पर्यायरूपे थवुं ते वस्तुनो पोतानो स्वभाव छे, तो बीजो तेने शुं करे? आ
संयोगोने कारणे आ पर्याय थई–एम संयोगने लीधे जे पर्याय माने छे तेणे
वस्तुना परिणमन स्वभावने जाण्यो नथी. भाई, तुं संयोगथी न जो, वस्तुना
स्वभावने जो. वस्तुनो स्वभाव ज एवो छे के ते कायम एकरूपे न रहे.
द्रव्यपणे एकरूप रहे पण पर्यायपणे एकरूपे न रहे, पलटाया ज करे–एवुं
वस्तुनुं स्वरूप छे.
एकरूपे तेनी स्थिति न रहे, तेनी हालत बदलाया ज करे. तेथी ते स्वयं पहेली
अवस्था छोडीने बीजी अवस्थारूप थया छे, बीजाने लीधे नहि. वस्तुमां भिन्न
भिन्न अवस्था थया ज करे छे; त्यां संयोगने कारणे ते भिन्न अवस्था थई–
एवो अज्ञानीनो भ्रम छे केमके ते संयोगने ज जुए छे पण वस्तुना
स्वभावने देखतो नथी. वस्तु पोते परिणमन स्वभाववाळी छे एटले एक ज
पर्यायरूपे ते रह्या