फेरफार थवानी बुद्धि छूटी जाय, ने स्वद्रव्य सामे जोवानुं रहे, एटले मोक्षमार्ग
प्रगटे.
पोताना स्वभावथी ज ठंडी अवस्था छोडीने ऊनी अवस्थारूप परिणम्या छे,
आम स्वभावने न जोतां, अज्ञानी संयोगने जुए छे के अग्नि आवी माटे
पाणी ऊनुं थयुं. अहीं आचार्यदेवे चार बोलथी स्वतंत्र वस्तुस्वरूप समजाव्युं
छे, ते समजे तो क््यांय भ्रम न रहे.
कर्युं छे.
परिणमवानो स्वभाव छे तेने अज्ञानी देखतो नथी. भाई! अवस्थानी
एकरूपे स्थिति न रहे एवुं ज वस्तुनुं स्वरूप छे. वस्तु कूटस्थ नथी पण वहेता
पाणीनी माफक द्रवे छे–पर्यायने प्रवहे छे; ते पर्यायनो प्रवाह वस्तुमांथी आवे
छे, संयोगमांथी नथी आवतो. भिन्न प्रकारना संयोगने कारणे अवस्थानी
भिन्नता थई, के संयोग बदल्या माटे अवस्था बदली–एम अज्ञानीने भ्रम
थाय छे, पण वस्तुस्वरूप एम नथी. अहीं चार बोलथी वस्तुनुं स्वरूप
एकदम स्पष्ट कर्युं छे.
२. परिणामी वस्तुना ज परिणाम छे, अन्यना नहि.
३. ते परिणामरूपी कर्म कर्ता वगरनुं होतुं नथी.
४. वस्तुनी स्थिति एकरूपे रहेती नथी.
–माटे वस्तु पोते ज पोताना परिणामरूप कर्मनी कर्ता छे. ए सिद्धांत छे.