Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९२ आत्मधर्म : २४अ :
आ चार बोलमां तो घणुं रहस्य समावी दीधुं छे. एनो निर्णय करतां
भेदज्ञान थाय, ने द्रव्यसन्मुखद्रष्टिथी मोक्षमार्ग प्रगटे.
प्रश्न:– संयोग आवे ते प्रमाणे अवस्था बदलाती देखाय छे!
उत्तर:– ए साचुं नथी; वस्तुस्वभावने जोतां एम देखातुं नथी, अवस्था
बदलवानो स्वभाव वस्तुनो पोतानो छे–एम देखाय छे. कर्मनो मंद उदय माटे
मंदराग ने तीव्र उदय माटे तीव्र राग–एम नथी, अवस्था एकरूप न रहे पण
मंद–तीव्रपणे बदलाय एवो स्वभाव वस्तुनो पोतानो छे, ते कांई परने लीधे
नथी.
भगवान पासे जईने पूजा करे के शास्त्र सांभळे ते वखते जुदा
परिणाम, ने घरे जाय त्यां जुदा परिणाम, तो शुं संयोगना कारणे ते
परिणाम बदल्या? ना; वस्तु एकरूपे न रहेतां तेना परिणाम पलटे एवो ज
तेनो स्वभाव छे. ते परिणामनुं पलटवुं वस्तुना ज आश्रये थाय छे,
संयोगना आश्रये नहि. आ रीते वस्तु स्वयं पोताना परिणामनी कर्ता छे–ए
निश्चित सिद्धांत छे. आ चार बोलना सिद्धान्त प्रमाणे वस्तुस्वरूप समजे तो
मिथ्यात्वना मूळिया ऊखडी जाय ने पराश्रितबुद्धि छूटी जाय. आवा
स्वभावनुं भान थतां वस्तु उपर लक्ष जाय छे ने सम्यग्ज्ञान थाय छे. ते
सम्यग्ज्ञानपरिणामनो कर्ता आत्मा पोते छे. पहेलां अज्ञानपरिणाम पण
वस्तुना ज आश्रये हता, ने हवे ज्ञानपरिणाम थया ते पण वस्तुना ज
आश्रये छे.
मारी पर्यायनो कर्ता बीजो नहि, मारुं द्रव्य ज परिणमीने मारी
पर्यायनुं कर्ता छे–एवो निश्चय करतां स्वद्रव्य उपर लक्ष जाय ने भेदज्ञान तथा
सम्यक्त्व थाय. हवे ते काळे कांईक रागादि परिणाम रह्या ते पण आत्मानुं
परिणमन होवाथी आत्मानुं कार्य छे–एम धर्मी जीव जाणे छे, ते अपेक्षाए
व्यवहारनयने ते काळे जाणेलो प्रयोजनवान कह्यो छे. धर्मीने द्रव्यनो शुद्ध
स्वभाव लक्षमां आवी गयो छे एटले सम्यक्त्वादि निश्चय कार्य थाय छे, ने जे
राग