उत्तर:– ए साचुं नथी; वस्तुस्वभावने जोतां एम देखातुं नथी, अवस्था
मंदराग ने तीव्र उदय माटे तीव्र राग–एम नथी, अवस्था एकरूप न रहे पण
मंद–तीव्रपणे बदलाय एवो स्वभाव वस्तुनो पोतानो छे, ते कांई परने लीधे
नथी.
परिणाम बदल्या? ना; वस्तु एकरूपे न रहेतां तेना परिणाम पलटे एवो ज
तेनो स्वभाव छे. ते परिणामनुं पलटवुं वस्तुना ज आश्रये थाय छे,
संयोगना आश्रये नहि. आ रीते वस्तु स्वयं पोताना परिणामनी कर्ता छे–ए
निश्चित सिद्धांत छे. आ चार बोलना सिद्धान्त प्रमाणे वस्तुस्वरूप समजे तो
मिथ्यात्वना मूळिया ऊखडी जाय ने पराश्रितबुद्धि छूटी जाय. आवा
स्वभावनुं भान थतां वस्तु उपर लक्ष जाय छे ने सम्यग्ज्ञान थाय छे. ते
सम्यग्ज्ञानपरिणामनो कर्ता आत्मा पोते छे. पहेलां अज्ञानपरिणाम पण
वस्तुना ज आश्रये हता, ने हवे ज्ञानपरिणाम थया ते पण वस्तुना ज
आश्रये छे.
सम्यक्त्व थाय. हवे ते काळे कांईक रागादि परिणाम रह्या ते पण आत्मानुं
परिणमन होवाथी आत्मानुं कार्य छे–एम धर्मी जीव जाणे छे, ते अपेक्षाए
व्यवहारनयने ते काळे जाणेलो प्रयोजनवान कह्यो छे. धर्मीने द्रव्यनो शुद्ध
स्वभाव लक्षमां आवी गयो छे एटले सम्यक्त्वादि निश्चय कार्य थाय छे, ने जे
राग