अजीवकर्म साथे छे; ते राग अने कर्म बंने शुद्धजीवना लक्षणभूत नथी. जे ज्ञान छे ते ज
आत्मानी स्वजात छे. राग ते शुद्धजीवनी जात नथी, माटे ते जीव नथी. राग वगरनो
जीव होय, कर्मना संबंध वगरनो जीव होय, पण ज्ञान वगरनो जीव कदी न होय.
रागनी सहाय नथी. रागथी भिन्न वस्तुनी प्राप्ति रागवडे केम थाय? न थाय; वीतरागी
स्वसंवेदनथी ज तेनी प्राप्ति थाय छे.
उत्तर:– लक्षणथी विरुद्ध ते अपलक्षण. आत्मानुं लक्षण ज्ञान छे; ते लक्षणथी
माने छे ते अपलक्षणने सेवनारो छे. प्रभु आत्मामां ज्ञानादि निजगुणोनो पार नथी.
पण तेने भूलीने ते रागादिने सेवतो थको, तेटलो ज पोताने मानीने पामर थई रह्यो
छे. प्रभु! स्वलक्षणथी तारा आत्माने जाणीने तेनो विश्वास कर.
उत्तर:– शुद्धउपयोग तो स्वरूपना निर्विकल्पध्यान वखते ज होय छे; नीचे
उपर ते निरंतर होय छे. ज्यारे शुद्धपरिणति तो धर्मीने सदाय भूमिका अनुसार
वर्तती ज