Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : आत्मधर्म : माह : २४९२
होय छे, चोथा गुणस्थानथी ज शुद्धपरिणति शरू थई जाय छे ते वृद्धिगत थती जाय छे.
शुद्धउपयोग न होय त्यारे पण धर्मीने सम्यक्त्वादि धर्म वर्ते छे; शुद्धपरिणति न होय
त्यां धर्म न होय. शुभ–के अशुभ परिणाम वखते पण सम्यक्त्वादि जे शुद्धपरिणति
प्रगटी छे ते तो धर्मीने वर्ते ज छे. शुभ के अशुभ उपयोगना काळे शुद्धउपयोग न होय
पण शुद्धपरिणति तो धर्मीने होय. शुद्धउपयोग ते ज्ञाननी स्वसन्मुख परिणति छे; ने
शुद्धपरिणति तो श्रद्धामां, ज्ञानमां, चारित्रमां, सुखमां एम बधा गुणनी परिणतिमां
होय छे. आ रीते शुद्धोपयोग तथा शुद्धपरिणतिनी विशेषता जाणवी. शुद्धोपयोगने पण
शुद्धपरिणति तो कही शकाय. शुद्धउपयोग के शुद्धपरिणति ए बंने राग वगरना छे.
शुभउपयोग ते शुद्ध नथी, तेनो समावेश अशुद्धउपयोगमां छे, ने ते अशुद्धपरिणतिमां
जाय छे. जेटली शुद्धपरिणति छे तेटलो ज धर्म छे.
(८९) प्रश्न:– एक तरफथी नरकमां पण सम्यग्द्रष्टिने सुखरसनी गटागटी कही,
ने बीजी तरफ अहींना मुनि स्वर्गमां जाय त्यां ते पुण्यसंपदारूप कलेशने भोगवे छे
एम कह्युं, तो नरकमां सुख कह्युं ने स्वर्गमां कलेश कह्यो–ए कई रीते?
उत्तर:– नरकमां सम्यग्द्रष्टिने जे सुख कह्युं ते सम्यग्दर्शन सहित जेटलुं सुख
प्रगट्युं छे तेनी मुख्यविवक्षाथी कह्युं छे. अने स्वर्गमां सम्यग्द्रष्टिने जे पुण्यफळना
भोगवटामां कलेश कह्यो ते तेना रागनी विवक्षाथी कह्युं छे. तेनी साथे तेने
सम्यग्दर्शनजन्य जे सुख छे ते तो वर्ते ज छे. पण तेनी साथेना रागमां (पुण्यफळरूप
जे सामग्री ते तरफना वलणमां) सुख नथी पण आकुळता छे, एम बताववा तेने
कलेशनो भोगवटो कह्यो. ने नरकमां सम्यग्द्रष्टिने जे आकुळता ने दुःख छे तेनी मुख्यता
न करतां, ते वखते स्वरूपाचरणदशानुं जे परमसुख तेने प्रगट्युं छे ते बताववा तेने
सुखरसनी गटागटी कही.–एम समजवुं. सम्यग्द्रष्टिनेय जेटलो पुण्यना फळना भोगवटा
तरफनो भाव छे तेटलुं दुःख छे. जेटली रागरहित परिणति छे तेटलुं ज सुख छे.–पछी
स्वर्गमां हो के नरकमां.