Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 42 of 55

background image
: माह : २४९२ आत्मधर्म : ३७ :
(९०) प्रश्न:– शुद्धआत्मस्वभावने पहेलां जाणवो, के पहेलां आदरवो?
उत्तर:– शुद्धआत्मस्वभावनुं ज्ञान अने आदर बंने एक साथे ज थाय छे. ज्यां
तेनो आदर कर्यो त्यां ज्ञान ते तरफ झूके ज; अने ज्यां ज्ञान ते तरफ झूके त्यां तेनो
आदर थाय ज. शुद्धात्माने जाण्या वगर तेनो आदर क््यांथी थाय? ने शुद्धात्मानो
आदर कर्यो वगर ज्ञान ते तरफ झूके क््यांथी? आ रीते शुद्धात्मानुं ज्ञान अने आदर
बंने एक साथे ज छे. सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान बंने एक साथे छे.
शुद्धात्मानो आदर राखीने तेनुं ज्ञान थई शके नहि. तेमज शुद्धात्मानुं अज्ञान
राखीने तेनो आदर थई शके नहि. शुद्धात्मानुं ज्ञान तेना आदरपूर्वक ज थई शके; ने
शुद्धात्मानो आदर तेना ज्ञानपूर्वक ज थई शके.
(आ अंकनी चर्चा पूरी जय जिनेन्द्र)
संतोनी वात टूंकी ने टच,
स्वमां वस ने परथी खस.
(ये टूंकीटच बात एकबार ओर पढिये)