: माह : २४९२ आत्मधर्म : ३९ :
कोयडा उकेली आपो
(बाळको, तमने उखाणाना कोयडा
उकेलवा बहु गमे केम! तो आ पांच
कोयडा वांच्या भेगा ज उकेली आपो.)
(१)
आकाशमां विचरे छे पण पंखी नथी,
देव छे पण एने देवी नथी;
शरीर छे पण खाता नथी,
बोले छे पण मोढुं खोलता नथी.
चाले छे पण पगलां भरता नथी
...ए कोण?
(२)
भगवान छे पण बोलता नथी,
बधुं जाणे छे पण आंख नथी;
कांई आपता नथी छतां बधाने गमे छे.
ने आपणने एनी पासे बोलावे छे.
...ए कोण?
(३)
शास्त्री बतावे छे,
उपादेश रूडो आपे छे;
साधुथी पण मोटा छे,
कुंदकुंद प्रभुना जोटा छे...ए कोण?
(४)
रत्नत्रयना धारक छे,
भक्तोने भणावे छे,
शास्त्रोना अर्थ शीखवे छे,
श्रुतज्ञानना दरिया छे
(प)
वन जंगलमां वसे छे,
निजस्वरूपने साधे छे,
रत्नत्रयना धारक छे,
पण ‘आचार्य’ नथी...ए कोण?
(बाळको बाजुना पांचे प्रश्नोना
जवाब तद्न सहेला छे. तमने आवडी तो
गया हशे. छतां न आवडयां होय तो, तमे
‘नमस्कार मंत्र’ बोलशो एटले तरत
तमने पांचेना जवाब आवडी जशे. छतांय
न आवडे तो आवता अंकमां जोई लेजो.
(आना जवाब लखीने मोकलवाना नथी.
बोधवचनो
चंदनने कोई कापे तोपण तेने ते
सुगंध ज आपे छे.
गमे तेवा दुःखमांय सज्जनो
पोतानी सज्जनताने छोडता नथी.
गुणवाननी ईर्षा करनार गुण
पामतो नथी; गुणवाननुं अनुकरण
करनार गुण पामे छे.
वहेतुं पाणी वच्चे आवता पर्वतने