Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९२ आत्मधर्म : ३ :
जे समस्त पापोने अर्धा निमेषमां भस्म करी नांखे छे
*
(परमात्माप्रकाश गा. ११४)
जो कोई जीव मात्र अर्धो निमेष पण परमात्मतत्त्वमां प्रीति करे तो ते प्रीति
समस्त पापसमूहने एवी रीते भस्म करी नांखे छे के जेवी रीते अग्निकणिका लाकडाना
पहाडने भस्म करी नांखे.–शुद्धआत्मानी प्रीतिनुं आवुं महान सामर्थ्य जाणीने, हे जीव!
तुं तेनी प्रीति कर...ने सदाय तेनी भावना भाव.
अडधो निमिष एटले के आंख मींचीने उघाडे एना करतां पण अडधो वखत;
एटलो समय पण जे जीव अंतर्मुख थईने आ परमात्मतत्त्वनी प्रीति करे छे ते जीव
ध्यानाग्निवडे समस्त कर्मोने बाळी नाखे छे. रुचिना बळे ज्यां क्षणमात्र पण स्वरूपनुं
ध्यान कर्युं त्यां अनंता कर्मो बळीने खाख! जुओ, आ शुद्धात्माना प्रेमनो महिमा!
शुभरागना प्रेमवडे अनंतकाळथी जे हाथमां न आव्युं, ते शुद्धात्मानी प्रीतिवडे आंखना
टमकारमां हाथ आवशे. ज्यां रुचिनी दिशा पलटावीने स्वद्रव्य सन्मुख थयो त्यां
स्वतत्त्वमां एकाग्रतावडे परम आनंद प्रगटे छे, ने रमतमात्रमां सर्वे कर्मो नष्ट थई
जाय छे. स्वरूपनी केलिमां आनंद करतो करतो अल्पकाळमां ते केवळज्ञान लेशे.
चैतन्यनी कोई एवी अचिंत्य ताकात छे के ते एक क्षणमां केवळज्ञान ल्ये. जेनी एक
क्षणनी प्रीतिमां आटली ताकात ते स्वभावना महिमानी शी वात?
अनंतकाळथी नहि प्राप्त करेली आत्मानी ऋद्धि तारे प्राप्त करवी होय तो
बहारनी बधी ऋद्धिनो ने बहारना जाणपणानो गर्व छोडीने, चैतन्यस्वरूप आत्मानी
प्रीति कर. आत्मा तो बेहद आनंदनो निधान छे, एनामां तो परम चैतन्यरस ने
आनंदरस भर्यो छे. सोनुं बनाववानी ऋद्धिनी के बीजी कोई ऋद्धिनी आ चैतन्यऋद्धि
पासे कांई किंमत