Atmadharma magazine - Ank 269
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : फागण : २४९२
जेम उजळा हंस मानसरोवरमां वसे छे ने मोतीना चारा चरे छे, तेम आ
उज्वळ चैतन्य हंसलो ज्ञानीनां निर्मळ हृदय सरोवरमां वसे छे ने ज्ञान–आनंदना
मोतीना चारा चरे छे. ए हंसलो रागना चारा चरे नहि. ज्ञानीना अंतरमां परम
वीतरागी सुखरूपी अमृतथी भरेलुं जे मानसरोवर, तेमां निर्मळगुणोथी शोभतो
आत्महंस केलि करे छे. हे जीव! तुं चैतन्यनी परम प्रीति करीने तेना आनंदमां केलि
कर. केमके चैतन्यनो जेने प्रेम नथी ने परनो प्रेम छे ते जीव पोताना चैतन्यसुखने
चाखी शकतो नथी. विषयोना स्वादनो प्रेम होय ने आत्माना आनंदनो पण स्वाद
आवे एम एक म्यानमां बे तलवार रही शके नहि. ज्यां आत्माना आनंदनो स्वाद
चाख्यो त्यां विषयोनो प्रेम रहे नहि. जेणे चैतन्यनो स्वाद चाख्यो ते समकितीने
रागनो रंग रहेतो नथी; आत्माना आनंद सिवाय बीजुं कांई एने प्रिय नथी. एना
हृदयमां रागनो वास नथी. एना अंतरमां तो परमात्म तत्त्व ज वस्युं छे.
अहो, सर्वज्ञना मार्गमां आत्माने साधवाना पंथ कोई अलौकिक छे! वीतरागना
ए पंथ राग वडे हाथ आवे तेम नथी. रागथी जुदो थईने अरागी श्रद्धा–ज्ञान करे तो
आत्मा अनुभवमां आवे, ने मोक्षनो मार्ग प्रगटे. चैतन्यहंस तो आवा मार्गे चालनारो
छे....ए रागना पंथे चालनारो नथी. आम चैतन्यहंसनी प्राप्तिना उपायनुं माहात्म्य
बताव्युं छे. तेने जाणीने हे जीव! तुं बाह्य विषयोनी प्रीति छोडीने अंतरमां निर्मळ
परिणाम वडे तारा शुद्ध आत्माने देख.
राग वगरनुं एकलुं ज्ञान, ते अज्ञानीने लक्षमां आवतुं नथी.
* * * * *
मुनिवरोनुं जीवन जेम
स्वानुभवमय छे तेम मुमुक्षुनुं जीवन
भेदज्ञाननी भावनामय होवुं जोईए.
भेदज्ञाननी भावनानुं फळ
स्वानुभवप्राप्ति छे. मुमुक्षु एटले मुनिनो
नानो भाई. मुनिराज महा मुमुक्षु छे, आ
हजी नानो मुमुक्षु छे. एनुं जीवन पण
मुनिने अनुसरतुं होवुं जोईए.