Atmadharma magazine - Ank 269
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 11 of 40

background image
: फागण : २४९२ आत्मधर्म : ७ :
परलोकमां–ब्रह्मलोक
(तेने ज्ञानी पोताना अंतरमां अवलोके छे)
प्रवेशी गई छे ते परिणतिमां परमात्मा वस्या छे; ते
परिणति आनंदनो अनुभव करती करती परमात्माने
भेटवा चाली छे; परम ब्रह्मस्वरूप आत्माना रंगे ते
परिणति रंगाई गई छे. स्वरूपना रंगे रंगायेली ते
परिणति सिद्धपदने साधशे.
(परमात्मा प्रकाश–प्रवचन गा. ११०–११२)
देह ते अजीव, तेनाथी भिन्न; तेम ज विकारी भावो तेनाथी पण भिन्न; आवो
जे शुद्ध चैतन्यमय उत्कृष्ट आत्मस्वभाव, जेना अवलोकनथी परम आनंदनो अनुभव
थाय; आवा परम तत्त्वने ज्ञानी निर्विकल्प स्वसंवेदनथी पोतामां देखे छे. ‘पर’ एटले
उत्कृष्ट एवो जे शुद्धआत्मा तेने जे पोताना अंतरमां अवलोके छे–देखे छे–जाणे छे–
अनुभवे छे, ते जीव शीघ्र परलोकमां एटले के परमात्म तत्त्वमां प्रवेश करे छे. आवो जे
शुद्ध ज्ञानमय ब्रह्मस्वरूप आत्मा ते ज साचो ब्रह्मलोक छे, ते ज जगतमां सर्वोत्कृष्ट
होवाथी परलोक छे. स्वयं कल्याणरूप होवाथी ते पोते शिव छे, ने पोताना ज्ञान–आनंद
आदि अनंतगुण–पर्यायोमां पोते ज सर्वव्यापक होवाथी ते विष्णु छे.–दरेक आत्मा
निश्चयथी आवो छे. सिद्ध भगवान लोकाग्रे व्यक्तरूपे आवा परमात्मा छे, ने दरेक
आत्मा शक्तिरूपे आवा परब्रह्म परमात्मा छे. अंतर्मुख उपयोग वडे आवा आत्माने
जे अवलोके छे ते ज ‘पर’ एवा उत्कृष्ट आत्माने देखे छे, ने सिद्धपदरूप परलोकने ते
प्राप्त करे छे.
तारे परलोकने पामवो छे? एटले के उत्कृष्ट एवा सिद्धपदने पामवुं छे?–तो पर
एवा सर्वोत्कृष्ट निजपदनुं तारामां अवलोकन कर. चोथा गुणस्थाने सम्यग्द्रष्टि जीव
अंतरनी द्रष्टि वडे पोतामां ज परमात्म तत्त्वने अवलोके छे. धर्मात्माना अंतरमां आवो
उत्कृष्ट आत्मा वसे छे.
जगतमां अनंत आत्माओ पोतानी परमेश्वरताथी परिपूर्ण छे. एनाथी उत्तम