जेने अधिकता लागे छे ते पर–लोकने देखतो नथी, ने पर–लोकने जे देखतो नथी ते
सिद्धपदने पामतो नथी. भाई, उत्कृष्ट तो तारो आत्मा छे. विकल्प आवे ते आत्माना
स्वभावनी प्राप्तिने जराय सहेली करी दे–एम बनतुं नथी; विकल्पमां–रागमां जराय
उत्तमपणुं नथी, सारपणुं नथी. सारपणुं तो परम ब्रह्म आत्मतत्त्वमां ज छे–एम नक्की
करीने तेमां तारी मतिने जोड तो ते तरफ तारी गति थाय एटले के परिणतिनी गति
स्वभाव तरफ वळे. अज्ञानीनी परिणति विकार तरफ झूके छे, केमके शुद्धात्माने ते
अवलोकतो नथी; ज्ञानीनी परिणति शुद्धात्माना अवलोकनवडे विकारथी पाछी वळीने,
चिदानंद स्वभाव तरफ झुके छे ने पोताना परम–उत्कृष्ट पदने प्राप्त करे छे. माटे
स्वसंवेदन ज्ञानथी तारा आवा आत्माने तुं जाण–एम उपदेश छे.
अंतरना परम पदनी प्राप्ति क््यांथी थाय? परम धाम एवुं सिद्धपद तेने क्यांथी
देखाय? परम धाम एवुं सिद्धपद तो पोताना आत्मामां ज छे, सिद्धभगवंतो
अनंतगुणधाम एवा निजपदमां ज स्थिर छे.
अंतरमां आ परमतत्त्वने ज वसाव्युं छे.
परमात्मा ज बिराजे छे. ‘ज्यां हुं वसुं त्यां तुं नहीं’ एटले के मारा ज्ञानमां ज्यां
परमात्मा वस्या त्यां हवे परभावने तेमां स्थान नथी. परमात्म तत्त्वनी रुचि ने
रागनी रुचि बंने एक साथे रही शके नहि. जे परिणति अंतरमां वळीने परमात्म
तत्त्वमां प्रवेशी गई छे ते परिणतिमां परमात्मा वस्या छे; ते परिणति आनंदनो
अनुभव करती करती परमात्माने भेटवा चाली छे.