Atmadharma magazine - Ank 269
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : फागण : २४९२
देहाश्रित भेखना जे घणा भेदो ने विकल्पो–ते कोई आत्मा नथी, आत्मा तो
एक ज्ञान छे. –ते ज्ञानस्वरूपमां एकाग्रतावडे ज जणाय छे. ज्ञानवडे ज्ञानस्वरूपने जाणे
त्यारे परथी साचुं भेदज्ञान थाय.
ज्यां देह ज जीवनो नथी त्यां देहना वेष जीवना क््यांथी होय? ते उपरांत अहीं
कहे छे के शुद्धात्मस्वरूपनुं साधक एवुं भावलिंग एटले के निर्मळपर्याय, तेने शुद्धजीव
कहेवो ते पण व्यवहारथी छे–केमके ते पण एक अंश छे; आत्मा तो अनंतगुणनो अखंड
पिंड छे. आखा शुद्धजीवने एक निर्मळ पर्यायथी ओळखवो ते व्यवहार छे. मुनिदशा ते
आत्मा, प्रमत्त–अप्रमत्त ते आत्मा,–ए पण ज्यां व्यवहार छे त्यां दिगंबर शरीर वगेरे
द्रव्यलिंग तो आत्मा केवो? ए असद्भुत एटले आत्माथी बहार छे; आत्मानी
सत्तामां, आत्माना अस्तित्वमां ते द्रव्यलिंग नथी.
निर्मळपर्यायरूप जे भावलिंग छे–ते जो के आत्मानी ज शुद्धपर्याय छे, ते कांई
आत्माथी जुदी नथी; पण ते पर्यायना भेदथी आत्माने जोवो ते व्यवहार छे; पर्यायने
लक्षमां लेतां विकल्प ऊठे छे, तेमां निर्विकल्प–वीतरागी स्वसंवेदन थतुं नथी. निर्विकल्प
समाधिनो विषय अखंड शुद्धआत्मा छे; निर्मळपर्यायनो भेद ते निर्विकल्पसमाधिनो
विषय नथी.
अरे जीव! आत्मा केवो छे? तेने ते कदी जाण्यो नथी. तुं केवो छो, तारुं
अस्तित्व केवडुं छे–तेनी सन्मुख तुं जो. निर्मळपर्याय ते शुद्धआत्माने साधे छे,
निर्मळपर्याय साधन थईने शुद्धआत्माने प्रसिद्ध करे छे ‘आत्मा आवो छे.’ आ रीते
निर्मळपर्याय ते साधनरूप छे ने शुद्धआत्मा तेना वडे साध्य छे. पण राग वडे
शुद्धआत्मा सधातो नथी. राग ते शुद्धआत्मानुं साधन नथी. शुद्धआत्मानुं साधन तेनी
निर्मळपर्याय छे,–तेथी व्यवहारे ते पर्यायने शुद्धआत्मा कहेवाय छे; विकार के देहादिनी
तो जात ज जुदी छे तेथी ते तो उपचारे–व्यवहारे पण शुद्धआत्मानुं स्वरूप नथी.
शुद्धआत्मा तो वज्र जेवो–जेनी एक कणी पण कदी खरे नहि, जेनो एक अंश पण कदी
ओछो न थाय,–आवो एकरूप शुद्धआत्मा ते ज साचो आत्मा छे, ते ज निश्चयनयनो
आत्मा छे, ते ज सम्यग्द्रष्टिनो आत्मा छे, आत्मा तो बधाय आवा ज छे–पण
सम्यग्द्रष्टि ज तेने देखे छे. अज्ञानी तो आत्माने विकारवाळो ने संयोगवाळो ज देखे छे,
साचा आत्माने ते देखतो नथी; एटले परमात्मतत्त्व तेने प्रकाशित थतुं नथी. ज्ञानीने
अंत द्रष्टिना वीतरागी स्वसंवेदनमां शुद्ध परमात्मतत्त्व प्रकाशित थाय छे. अरे जीव!