नजर करी नथी. सन्तोए परम महिमावंत परमात्मतत्त्व प्रसिद्ध करीने देखाडयुं छे.
पर्याय वडे आखो आत्मा जणाय छे पण जाणनारी पर्याय ते पोते आखो आत्मा नथी.
ते पर्याय शुद्धआत्मानो साधक छे एटले ते आत्मानुं चिह्न छे; ते चिह्नने ज शुद्धआत्मा
निर्विकल्प स्वसंवेदनमां आवे छे ते परमार्थ छे, निश्चय छे; आवा निश्चय–व्यवहाररूप
आत्मा छे, तेनाथी बहार पर भाव के देहादि ते आत्मा नथी, एम ज्ञानी अनुभवे छे.
स्वयं अध्यात्मरूप बन्या छे–एवा
एवा संतोनो साक्षात् समागम मळ्यो,
श्रवण मळ्युं, एना केवा धन्य भाग्य!!