Atmadharma magazine - Ank 269
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २४९२ आत्मधर्म : १३ :
आवुं महान तारुं परमात्मत्त्व, तेने तें कदी स्वसंवेदनथी प्रसिद्ध कर्युं नथी, एनी सामे
नजर करी नथी. सन्तोए परम महिमावंत परमात्मतत्त्व प्रसिद्ध करीने देखाडयुं छे.
पर्याय वडे आखो आत्मा जणाय छे पण जाणनारी पर्याय ते पोते आखो आत्मा नथी.
ते पर्याय शुद्धआत्मानो साधक छे एटले ते आत्मानुं चिह्न छे; ते चिह्नने ज शुद्धआत्मा
कही देवो ते अंशमां अंशीनो उपचार छे एटले व्यवहार छे. ने अखंड आत्मा जे
निर्विकल्प स्वसंवेदनमां आवे छे ते परमार्थ छे, निश्चय छे; आवा निश्चय–व्यवहाररूप
आत्मा छे, तेनाथी बहार पर भाव के देहादि ते आत्मा नथी, एम ज्ञानी अनुभवे छे.
अहा, स्वानुभवनी चर्चा करे
तेने पण धन्य कह्यो, तो जेओ
स्वानुभवरूपे साक्षात् परिणम्या छे
स्वयं अध्यात्मरूप बन्या छे–एवा
संतोना महिमानी शी वात! अने जेने
एवा संतोनो साक्षात् समागम मळ्‌यो,
एमना चरणोनी साक्षात् उपासना
मळी अने एमनी वाणीनुं साक्षात्
श्रवण मळ्‌युं, एना केवा धन्य भाग्य!!