Atmadharma magazine - Ank 269
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 23 of 40

background image
: फागण : २४९२ आत्मधर्म : १९ :
गया वगर रहे नहि माटे कहे छे के वीतरागी जिनदेवने देखतां जेना अंतरमां भक्ति
नथी उल्लसती, जेने पूजा–स्तुतिनो भाव नथी जागतो ते गृहस्थ दरिया वच्चे पत्थरनी
नावमां बेठो छे. नियमसारमां पद्मप्रभमुनि कहे छे के हे जीव!
भवभयभेदिनी भगवति भवतः किं भक्तिरत्र न शमस्ति?
तर्हि भवाम्बुधिमध्यग्राहमुखान्तर्गतो भवसि।।१२।।
भवभयने भेदनारा एवा आ भगवान प्रत्ये शुं तने भक्ति नथी? जो नथी तो
तुं भवसमुद्रनी वच्चे मगरना मुखमां छे.
अरे, मोटा मोटा मुनिओ पण जिनदेवना दर्शन अने स्तुति करे छे ने तने जो
एवो भाव नथी आवतो, ने एकला पापमां ज रच्योपच्यो रहे छे तो तुं भवसमुद्रमां
डुबी जईश, भाई! माटे तारे आ भवदुःखना दरियामां न डुबवुं होय ने एनाथी तरवुं
होय तो संसार तरफनुं तारुं वलण बदलीने वीतरागी देव–गुरु तरफ तारा परिणामने
वाळ, तेओ धर्मनुं स्वरूप शुं कहे छे ते समज, तेमणे कहेला आत्मस्वरूपने रुचिमां ले;
तो भवसमुद्रमांथी तारो छूटकारो थशे.
भगवाननी मूर्तिमां ‘आ भगवान छे, एवो स्थापना निक्षेप खरेखर
सम्यग्द्रष्टिने ज होय छे; केमके, सम्यग्दर्शनपूर्वक प्रमाणज्ञान होय छे, प्रमाणपूर्वक सम्यक्
नय होय छे, ने नय वडे साचो निक्षेप थाय छे. निक्षेप नय विना नहि, नय प्रमाण
विना नहि, ने प्रमाण शुद्धात्मानी द्रष्टि वगर नहीं. अहा, जुओ तो खरा, आ
वस्तुस्वरूप! जैन दर्शननी एक ज धारा चाली जाय छे भगवाननी प्रतिमा जोतां ‘अहो
आवा भगवान! एम एकवार पण जो सर्वज्ञदेवनुं यथार्थ स्वरूप लक्षगत करी लीधुं,
तो कहे छे के भवथी तारो बेठो पार छे!
अहीं एकला दर्शन करवानी वात नथी करी, पण एक तो ‘परम भक्ति’ थी
दर्शन करवानुं कह्युं छे, तेमज अर्चन (–पूजन) अने स्तुति करवानुं कह्युं छे, साची
ओळखाणपूर्वक ज परम भक्ति जागे; ने सर्वज्ञदेवने साची ओळखाण होय त्यां तो
आत्मानो स्वभाव लक्षगत थई जाय, एटले तेने दीर्घसंसार होय नहीं. आ रीते
भगवानना दर्शननी वातमां पण ऊंडु रहस्य छे. मात्र उपर उपरथी मानी ल्ये के,
स्थानकवासी लोको मूर्तिने न माने ने आपणे दिगंबर–जैन एटले मूर्तिने मानीए,–तो
एवा रुढिगत भावथी दर्शन करे, तेमां खरो लाभ थाय नहि, सर्वज्ञदेवनी ओळखाण
सहित करे तो ज खरो लाभ थाय. (आ वात ‘सत्ता स्वरूप’ मां घणा विस्तारथी
समजावी छे.)