आंगणे मुनि पधारे त्यारे पोताने धन्य मानता. अहा! मोक्षमार्गी मुनिना दर्शन पण
क्यांथी!! ए तो धन्य भाग्य ने धन्य घडी! मुनिना विरहे मोटा धर्मात्माओ प्रत्ये पण
एवो बहुमाननो भाव आवे के अहो धनभाग्य, मारा आंगणे धर्मात्मानां पगलां
थयां! आवा धर्मना उल्लासथी धर्मीश्रावक मोक्षमार्गने साधे छे; ने जेने धर्मनो आवो
प्रेम नथी ते संसारमां डूबे छे.
जेवुं छे. जिनबिंबदर्शनने तो सम्यग्दर्शननुं निमित्त गण्युं छे, ते निमित्तनो पण जे
निषेध करे तेने सम्यग्दर्शननी खबर नथी. समन्तभद्रस्वामी तो कहे छे के हे जिन!
अमने तारी स्तुतिनुं व्यसन पडी गयुं छे. जेम व्यसनी मनुष्य पोताना व्यसननी वस्तु
वगर रही शकतो नथी तेम सर्वज्ञना भक्तोने स्तुतिनुं व्यसन छे एटले भगवाननी
स्तुति–गुणगान वगर ते रही शकता नथी. धर्मात्माना हृदयमां सर्वज्ञदेवना गुणगान
कोतराई गया छे. अहा! साक्षात् भगवानने देखवानुं मळे ए तो बलिहारी छे
कुंदकुंदाचार्य जेवाए विदेहमां जईने सीमंधरनाथने साक्षात् देख्या एमनी तो शी वात!
अत्यारे तो अहीं एवो काळ नथी. अरे, तीर्थंकरनो विरह, केवळीओनो विरह, मोटा
संतमुनिओनो पण विरह, एवा काळे जिनप्रतिमाना दर्शन वडे पण धर्मी जीव
भगवाननुं स्वरूप याद करे छे.
सांभळतां ने दर्शन करतां हर्षित थई जाय. जेम सारा विनयवंत पुत्रो रोज सवारमां
माता–पिता पासे जईने विवेकथी पगे लागे छे, तेम धर्मी जीव प्रभु पासे बाळक जेवा
थईने विनयथी रोजे रोज धर्मपिता–जिनेन्द्र भगवाननां दर्शन करे छे, स्तुति पूजा करे
छे; मुनिवरोने भक्तिथी आहार दान करे छे. आवा वीतरागी देव–गुरुनी भक्ति
वगरनो जीव मिथ्यात्वनी नावमां बेसीने चारगतिना समु़द्रमां डुबे छे ने मोंघा मनुष्य
जीवनने नष्ट करी नाखे छे. माटे धर्मना प्रेमी जीवे देव–गुरुनी भक्तिना कार्योमां हंमेशा
पोताना धननो अने जीवननो सदुपयोग करवो–एम उपदेश छे.