: २२ : आत्मधर्म : फागण : २४९२
पचीस वर्ष पहेलांना प्रवचनमांथी
थोडांक....मधुर....संभारणां..
पचीस वर्ष पहेलां सोनगढमां सीमंधरप्रभु वगेरे भगवंतोनी पधरामणीनो जे
भव्य पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव थयो ते वखते गुरुदेवनी वाणीमां भक्तिरसनी
कोई अनेरी लहेरीओ वहेती हती.
पचीस वर्ष पहेलांना प्रवचनमां गुरुदेवना उद्गार नीकळेला के “भाई! आ तो
हजी शरूआत छे, हजी ‘कळश’ चडवानो बाकी छे. आमां बे वात आवी जाय छे–एक
तो जिनमंदिर उपर कळश चडवानो बाकी छे ते; अने ते उपरांत हजी कांई कांई नवीन
(धर्मवृद्धि) थशे...जेनां भाग्य हशे ते जोशे.
भगवाननी प्रतिष्ठा थई ते फागण सुद बीजने दिवसे ‘शुक्रवार’ हतो....तेनो