Atmadharma magazine - Ank 269
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २४९२ आत्मधर्म : २३ :
उल्लेख करीने प्रवचनमां गुरुदेवे कह्युं–आजे शुक्रवार...ने सामा शुक्रवारे भगवाननी
प्रतिष्ठा....जुओ, आ शुक्रवारे दाळीया थवाना छे....आत्मानुं दाळदर टाळवुं होय तेने
टळी जशे. लोकोमां कहे छे के कांई ‘शकरवार’ थाय तेम छे एटले कांई आपणा दाळीया
थाय छे! तो कहे छे के हा, अहीं शुक्रवारे दाळीया थवाना छे, दाळदर टळवानां
छे....त्रिलोकनाथ भगवान भेटवाना छे. एवा ‘शुक्रवार’ थवाना छे के जे भगवाननी
ओळखाण करे तेने भव न रहे.
१९९६ ना फागण सुद बीजे संघसहित गीरनारतीर्थनी यात्रा करी हती, तेने
याद करीने गुरुदेव पचीस वर्ष पहेलांना प्रवचनमां कहे छे के जुओ, गया वर्षे
नेमनाथप्रभुनी कल्याणभूमि गीरनार पर्वत उपर समश्रेणीनी टूंके (पंचमटूंके) बराबर
फागण सुद बीजे हता, ने अहीं आ वर्षे बराबर फागण सुद बीजने ज दिवसे नेमिनाथ
भगवाननी प्रतिष्ठा थशे (मंदिरना उपरना भागमां नेमप्रभु बिराजे छे.) समश्रेणीनी
टूंके भगवाननी भक्ति अने आत्मानी धून करीने ज्यारे नीचे आव्या त्यारे लोको
होंशथी एम कहेता हता के ‘अमे तो जाणे मोक्षमां जई आव्या....तेवुं लागे छे’ त्यां जे
दिवस हतो ते ज दिवसे अहीं भगवाननी प्रतिष्ठा थशे. मांगलिकमां बधो मेळ कुदरते
थई जाय छे.
भगवाननी प्रतिष्ठा करावनारने श्री गुरु कहे छे के तारुं जीवन धन्य छे.
भगवाननी प्रतिष्ठा थतां भक्तो कहे छे के अहो, आ वीतरागदेव पधार्या....आजे
अमने भगवान भेटया. हे नाथ! तारा वियोगमां तारी प्रतिष्ठा करीने तने अमारा
अंतरमां पधरावीए छीए
प्रवचनमां गदगद भावथी गुरुदेव बोलता हता–भरतक्षेत्रना भक्तो कहे छे के हे
नाथ! आ भरतक्षेत्रे तारा विरह पड्या छे...अहो, महाविदेहे बिराजता चैतन्य मूर्ति
प्रभु....जेना चरणनी सो सो ईन्द्रो सेवा करी रह्या छे एवा नाथनो अमने अहीं विरह
पड्यो, आवो मनुष्यभव मळ्‌यो....पण उत्तममां उत्तम साधननो वियोग पड्यो....हे
प्रभो! तारा आ जातना विरहथी अमारो काळ जाय छे. हे सीमंधरनाथ! तारो साक्षात्
विरह छे ते अहीं प्रतिष्ठा करीने टाळशुं. हे नाथ! ज्यां आप साक्षात् बिराजो त्यां
अमारा अवतार नहि....अमे आपनाथी दूर पड्या तोपण हे नाथ! अमे अमारा
आत्मामां आपनी प्रतिष्ठा करीने अमारुं पूरुं करशुं.
ए वखते उत्सव दरमियान प्रवचनमां गुरुदेवे पद्मनंदी पचीसीमांथी
शांतिनाथस्तोत्र वांच्युं हतुं...सीमंधरभगवाननी साथे साथे (आसपासमां)
शांतिनाथप्रभु तथा पद्मप्रभभगवान पण पधार्या छे.