प्रतिष्ठा....जुओ, आ शुक्रवारे दाळीया थवाना छे....आत्मानुं दाळदर टाळवुं होय तेने
टळी जशे. लोकोमां कहे छे के कांई ‘शकरवार’ थाय तेम छे एटले कांई आपणा दाळीया
थाय छे! तो कहे छे के हा, अहीं शुक्रवारे दाळीया थवाना छे, दाळदर टळवानां
ओळखाण करे तेने भव न रहे.
नेमनाथप्रभुनी कल्याणभूमि गीरनार पर्वत उपर समश्रेणीनी टूंके (पंचमटूंके) बराबर
फागण सुद बीजे हता, ने अहीं आ वर्षे बराबर फागण सुद बीजने ज दिवसे नेमिनाथ
भगवाननी प्रतिष्ठा थशे (मंदिरना उपरना भागमां नेमप्रभु बिराजे छे.) समश्रेणीनी
टूंके भगवाननी भक्ति अने आत्मानी धून करीने ज्यारे नीचे आव्या त्यारे लोको
होंशथी एम कहेता हता के ‘अमे तो जाणे मोक्षमां जई आव्या....तेवुं लागे छे’ त्यां जे
दिवस हतो ते ज दिवसे अहीं भगवाननी प्रतिष्ठा थशे. मांगलिकमां बधो मेळ कुदरते
थई जाय छे.
अमने भगवान भेटया. हे नाथ! तारा वियोगमां तारी प्रतिष्ठा करीने तने अमारा
अंतरमां पधरावीए छीए
प्रभु....जेना चरणनी सो सो ईन्द्रो सेवा करी रह्या छे एवा नाथनो अमने अहीं विरह
प्रभो! तारा आ जातना विरहथी अमारो काळ जाय छे. हे सीमंधरनाथ! तारो साक्षात्
विरह छे ते अहीं प्रतिष्ठा करीने टाळशुं. हे नाथ! ज्यां आप साक्षात् बिराजो त्यां
अमारा अवतार नहि....अमे आपनाथी दूर पड्या तोपण हे नाथ! अमे अमारा
आत्मामां आपनी प्रतिष्ठा करीने अमारुं पूरुं करशुं.
शांतिनाथप्रभु तथा पद्मप्रभभगवान पण पधार्या छे.