जिनधाम अनेरी शोभाथी शोभी रह्युं छे.
बपोरे गुरुदेवनी उपस्थितिमां माननीय प्रमुखश्री नवनीतभाई तथा माननीय मुरब्बी
श्री रामजीभाई, खीमचंदभाई, वगेरेना हस्ते थयुं हतुं; मुख्यपणे साहित्य प्रकाशनना
पुस्तको राखवा माटे आ होल बंधाय छे. स्वाध्याय मंदिरनी लगभग पाछळ पश्चिम
दिशामां आ होल बंधाशे. (प्रमुखश्री नवनीतभाईना मकाननुं शिलान्यास पण एज
दिवसे थयुं हतुं)
करी; आथी प्रसन्न चक्रवर्तीए ते माणसने कह्युं के
“मांग...मांग! तारे जे जोईए ते मांग....तुं जे
मांग ते आपुं” त्यारे ते माणस चक्रवर्तीने कहे छे
के–काढी नांख मारा घरनुं वासीदुं.
छे. भगवान आत्मा चैतन्य चक्रवर्ती प्रसन्न थईने
कहे छे के मांग...मांग! सम्यग्दर्शनथी मांडीने
केवळज्ञान अने सिद्धपद जे जोईए ते आपवानी
मारामां ताकात छे. त्यारे जे एवी भावना करे छे
के शरीर सारूं रहेजो ने पुण्यनां फळ मळजो...ते
मूरख नथी–पण–मूरखनो सरदार छे. अरे, चैतन्य
चक्रवर्ती पासेथी ते कांई जडनी ने पुण्यफळनी
मांगणी कराती हशे!