Atmadharma magazine - Ank 269
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २४९२ आत्मधर्म : ३१ :
सोनगढमां आनंदोत्सव:– सोनगढमां सीमंधरप्रभुनी मंगलप्रतिष्ठा थई तेनी
पच्चीस वर्षनी पूर्णतानो रजत जयंती अठ्ठाईमहोत्सव आनंदपूर्वक चाली रह्यो छे.
जिनधाम अनेरी शोभाथी शोभी रह्युं छे.
शिलान्यास:– मुरब्बीश्री रामजीभाईना सन्मान फंडमांथी तैयार थनार
साहित्य माटेनो खास होल–जेने हाल आगममंदिर अथवा तो जिनवाणी भवन
कहेवामां आवे छे तेनुं शिलान्यास सोनगढमां ता. ७–२–६६ महा वद त्रीजना रोज
बपोरे गुरुदेवनी उपस्थितिमां माननीय प्रमुखश्री नवनीतभाई तथा माननीय मुरब्बी
श्री रामजीभाई, खीमचंदभाई, वगेरेना हस्ते थयुं हतुं; मुख्यपणे साहित्य प्रकाशनना
पुस्तको राखवा माटे आ होल बंधाय छे. स्वाध्याय मंदिरनी लगभग पाछळ पश्चिम
दिशामां आ होल बंधाशे. (प्रमुखश्री नवनीतभाईना मकाननुं शिलान्यास पण एज
दिवसे थयुं हतुं)
मूरख नहीं– पण...?
एक वखत एक माणसना आंगणे
चक्रवर्तीराजा आव्यो ने तेणे तेनी आगतास्वागता
करी; आथी प्रसन्न चक्रवर्तीए ते माणसने कह्युं के
“मांग...मांग! तारे जे जोईए ते मांग....तुं जे
मांग ते आपुं” त्यारे ते माणस चक्रवर्तीने कहे छे
के–काढी नांख मारा घरनुं वासीदुं.
केवो मूरख? चक्रवर्ती पासे एने मांगता न
आवडयुं. आत्मा पण आवी ज मूर्खाई करी रह्यो
छे. भगवान आत्मा चैतन्य चक्रवर्ती प्रसन्न थईने
कहे छे के मांग...मांग! सम्यग्दर्शनथी मांडीने
केवळज्ञान अने सिद्धपद जे जोईए ते आपवानी
मारामां ताकात छे. त्यारे जे एवी भावना करे छे
के शरीर सारूं रहेजो ने पुण्यनां फळ मळजो...ते
मूरख नथी–पण–मूरखनो सरदार छे. अरे, चैतन्य
चक्रवर्ती पासेथी ते कांई जडनी ने पुण्यफळनी
मांगणी कराती हशे!