Atmadharma magazine - Ank 269
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : फागण : २४९२
व्यवहारनयनो विषय छे–एम बताववुं छे. ने निश्चयना विषयमां आत्मानो एकरूप
परमस्वभाव छे. ते परमस्वभावनो आश्रय करनारी पर्याय ते मोक्षमार्ग छे.
धु्रवस्वभावना आश्रये पर्यायमां बंध टळीने मोक्ष थाय छे, ते सत्य छे. माटे पर्यायमां
मोक्षनो उद्यम कर्तव्य छे.
–पर्यायमां ते मोक्षनो उद्यम केम थाय?
– के पर्यायने धु्रवस्वभावमां अंतर्मुख करवाथी मोक्षनो उद्यम थाय छे.
शुद्धपर्यायवडे मोक्षमार्ग साधवो ते धर्मीनो व्यवहार छे; धर्मीना आवा
व्यवहारने अज्ञानी ओळखतो नथी; ते तो रागने अने बाह्यक्रियाने ज व्यवहार समजे
छे, निष्क्रिय एटले के बंध–मोक्षनी क्रिया जेनामां नथी एवो धु्रव परमस्वभाव ते
निश्चय छे, ने तेना आश्रये शुद्धपरिणति प्रगटी ते व्यवहार छे. ते परिणति सक्रिय छे.
बंध टाळवो ने मोक्ष प्रगट करवो एवी क्रिया पर्यायमां थाय छे. जुओ, आ एक
आत्मतत्त्वमां निष्क्रियपणुं ने सक्रियपणुं ए बंने वात एक साथे छे; एटले पर्यायमां
मोक्षनो यत्न थाय छे. धु्रव शुद्धात्मामां अंतरलक्ष करतां मोक्षमार्ग ने मोक्ष प्रगटे छे.
आवो जे परमशुद्धस्वभाव छे ते धर्मीजीवने उपादेय छे. कई रीते? के वीतराग
निर्विकल्प समाधिवडे शुद्धात्मा उपर लक्ष कर्युं छे, ते समाधिमां शुद्धआत्मा उपादेय छे.
आवा शुद्धात्मानुं लक्ष ते साचा विसामानुं स्थान छे.–आ ज सम्यग्द्रष्टिनुं उपादेयतत्त्व
छे; आवा परमतत्त्वने उपादेय करतां पर्यायमां मोक्षमार्ग ऊघडी जाय छे. आवा
अंतरतत्त्वने अंतरद्रष्टिवडे उपादेय करवानो सन्तोनो उपदेश छे.
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सन्तो शुद्धात्माना अनुभवनो उपदेश आपे
छे केमके तेनाथी ज मोक्षमार्ग थाय छे. जीवनमां,
पछी नहि परंतु हमणां ज, आवो अनुभव करवा
जेवो छे. अनुभवजीवन ए ज साचुं जीवन छे.
हे जीव! अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद
स्वानुभवमां छे, तेनो स्वाद ले.
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