छेदन थतां हुं छेदाई जईश. असंख्यप्रदेशी अखंड आत्माना एक प्रदेशने
पण कोई छेदी शके नहि, तेमज अनंतगुणना पिंडमांथी एक्केय गुणने
कोई भेदीने जुदो पाडी शके नहि. आवो ज्ञानानंदस्वभावी हुं छुं–एम तुं
जाण; ने आवा तारा परमात्मस्वरूपने तुं निर्विकल्प थईने ध्याव. एना
ध्यानथी अल्पकाळमां ज तुं भवसागरने तरी जईश ने देहातीत
परमानंदस्वरूप मोक्षनी तने प्राप्ति थशे.
वगरनो अजर, ने मरण वगरनो अमर छे. ए ज रीते शरीर सुंदर–युवान होय तो ते
पण तुं नथी, माटे तेमां ‘आ मारुं’ एवो मोह न कर. हुं युवान, हुं रूपाळो, के हुं वृद्ध,
हुं काळो एम देहमां आत्मबुद्धि न कर. वीस वीस वर्षना युवान राजकुमारो देहथी भिन्न
अतीन्द्रिय आत्माने जाणीने तेने साधवा वनमां चाल्या गया. अरे, सम्यग्द्रष्टि
राजपाट ने कोनी आ राणीओ? ज्यां देह पण मारो नथी त्यां अन्य द्रव्यनी शी वात!
आवा भानमां धर्मीने मरणनो भय छूटी गयो छे. ‘मारुं मृत्यु थशे’ एवो भय तेने
थतो नथी. मारी चैतन्य प्रभुतामां कदी वृद्धावस्था के मरण नथी.
छोडीने अंतर्मुख थईने अतीन्द्रिय आत्माने तारुं ध्येय बनाव.