Atmadharma magazine - Ank 270
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९२
चारेकोर पापकर्मना उदयथी घेरायेलो होवा छतां जे सम्यक्त्वने धारण करे छे ते जीव
एकलो होय तो पण अत्यंत प्रशंसनीय छे. भले जगतमां बीजा तेने न माने, भले कोई
तेने साथ न आपे तो पण एकलो एकलो ते मोक्षना मार्गमां आनंदपूर्वक चाल्यो जाय
छे. पूर्वकर्मनो उदय क््यां एनो छे? एनी वर्तमान परिणति तो चैतन्य स्वभाव तरफ
झुकीने आनंदमय बनी गई छे, ते परिणतिथी ते एकलो शोभे छे, ते प्रशंसनीय छे.
जेम वनमां सिंह एकलो पण शोभे छे तेम संसारमां सम्यग्द्रष्टि एकलो पण शोभे छे.
सम्यक्त्व भेगा पुण्य होय तो ज ते जीव शोभे–एवी पुण्यनी अपेक्षा कांई
सम्यग्दर्शनमां नथी. सम्यग्द्रष्टि पापना उदयथी पण जुदो छे ने पुण्यना उदयथी पण
जुदो छे. बंनेथी जुदो पोताना ज्ञानभावमां सम्यक्त्वथी ज ते शोभे छे; ते एकलो
अमृतमार्गे–आनंदथी मोक्षमां चाल्यो जाय छे.
अने जेने सम्यग्दर्शन नथी, अमृत मार्गथी जे बहार छे, जे मिथ्यामार्गमां
गमन करे छे, ते भले पुण्यना ठाठथी घेरायेलो होय, ने भले लाखो करोडो जीवो तेना
माननारा होय, तो पण ते शोभतो नथी, प्रशंसा पामतो नथी. कोई कुमार्गने आटला
बधा जीवो माने छे माटे तेमां कांईक शोभा हशे? तो कहे छे के ना, मिथ्यामार्गमां लाखो
जीवो होय तो पण तेओ शोभता नथी, केम के आनंदथी भरेला अमृतमार्गनी तेने
खबर नथी, ए तो मिथ्यात्वना झेरथी भरेला मार्गमां जई रह्या छे. कुपंथने लाखो
माणसो माने तेथी धर्मीने शंका न पडे के तेमां कांईक शोभा हशे! ने सत्पंथमां बहु
थोडा जीवो होय, पोते एकलो होय तो धर्मीने संदेह न पडे के आ मार्ग हशे के बीजो
हशे! सत्पंथमां एटले के मोक्षमार्गमां, ते एकलो पण शोभे छे. जगतनी प्रतिकूळतानो
घेरो एने सम्यक्त्वथी डगावी न शके. मोक्षमार्गने अहीं आनंदथी भरेलो अमृतमार्ग
कह्यो छे, तेनाथी बहार मिथ्यात्वमार्गमां लाखो करोडो जीवो पण शोभता नथी; ने
अमृतमार्गमां एक–बे–त्रण सम्यग्द्रष्टि होय तो पण जगतमां ते शोभे छे. माटे आवा
सम्यक्त्वने निश्चलपणे धारण करवुं. मुनिधर्म हो के श्रावकधर्म हो, तेमां सम्यग्दर्शन
सौथी पहेलुं छे. सम्यग्दर्शन वगर श्रावकधर्म के मुनिधर्म होय नहि.